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सप्ततिका प्रकरण
अब मोहनीय कर्म के कथन का उपसंहार करके नामकर्म को कहने की प्रतिज्ञा करते हैं ।
दसनवपन्नरसाई बंधोदयसन्तपयडिठाणाई ।
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१
भणियाई मोहणिज्जे इत्तो नामं परं वोच्छं ॥ २३ ॥'
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विशेषार्थ - मोहनीय कर्म के बन्ध, उदय और सत्तास्थानों के कथन का उपसंहार करते हुए गाथा में संकेत किया गया है कि मोहन कर्म के बंधस्थान दस, उदयस्थान नौ और सत्तास्थान पन्द्रह होते हैं। जिनमें और जिनके संवेध भंगों का कथन किया जा चुका है । अब आगे की गाथा से नामकर्म के बंध, उदय और सत्ता के संवेध भंगों का कथन प्रारम्भ करते हैं ।
नामकर्म
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शब्दार्थ - दसनवपम्मरसाई- दस, नो और पन्द्रह, बंधोदयसन्तपयडिठाणा इंबंध, उदय और सत्ता प्रकृतियों के स्थान, भणियाई — कहे, मोहणिज्जे — मोहनीय कर्म के, इसो – इससे नामं - नामकर्म के, परं– आगे, वोच्छं - कहते हैं ।
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गाथार्थ — मोहनीय कर्म के बंध, उदय और सत्ता प्रकृतियों के स्थान क्रमश: दस, नौ और पन्द्रह कहे । अब आगे नामकर्म का कथन करते हैं ।
सबसे पहले नामकर्म के बंधस्थानों का निर्देश करते हैंतेवीस पण्णवीसा छथ्वीसा अट्ठवीस गुणतीसा । तीगतीस मेक्कं बंधद्वाणाणि नामस्स ॥२४॥ २
तुलना कीजिए—
दसणवपण्णरसाइं बंधोदय सत्तपयडिठाणाणि । भणिदाणि मोहणिज्जे एत्तो णामं परं वोच्छं ॥ तुलना कीजिए
गो० कर्मकांड ५१८
(क) जामस्स कम्मस्स अट्ठ द्वाणाणि एक्कतीसाए तीसाए एगूणतीसाए अट्ठवीसाए छब्बीसाए पणुवीसाए तेवीसाए एक्किस्से द्वाणं चेदि । ० ठा०, ० ६० www.jainelibrary.org
जीव०
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