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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ १३३ नौ प्रकृतिक बंधस्थान प्रभत्तसंयत और अप्रमत्तसंयत जीवों के होता है। इनके ४, ५, ६ और ७ प्रकृतिक, ये चार उदयस्थान होते हैं। चार प्रकृतिक उदयस्थान के रहते २८, २४ और २१ प्रकृतिक, ये तीन सत्तास्थान होते हैं। क्योंकि यह उदयस्थान उपशम सम्यग्दृष्टि और क्षायिक सम्यग्दृष्टि को ही प्राप्त होता है । पाँच प्रकृतिक और छह प्रकृतिक उदयस्थान के रहते पाँच-पाँच सत्तास्थान होते हैं। क्योंकि ये उदयस्थान तीनों प्रकार के सम्यग्दृष्टियों-औपशमिक, क्षायिक और वेदक को संभव हैं। किन्तु सात प्रकृतिक उदयस्थान वेदक सम्यग्दृष्टियो के संभव होने से यहाँ २१ प्रकृतिक सत्तास्थान संभव न होकर शेष चार ही सत्तास्थान होते हैं।' ____ 'पंचविह चउविहेसुछ छक्क'-पाँच प्रकृतिक और चार प्रकृतिक बंधस्थान में छह-छह सत्तास्थान होते हैं । अर्थात् पाँच प्रकृतिक बंधस्थान के छह सत्तास्थान हैं और चार प्रकृतिक बंधस्थान के भी छह सत्तास्थान हैं। लेकिन दोनों के सत्तास्थानों की प्रकृतियों की संख्या में अन्तर है जिनका स्पष्टीकरण नीचे किया जा रहा है। ___ सर्वप्रथम पाँच प्रकृतिक बंधस्थान के सत्तास्थानों को बतलाते हैं। पाँच प्रकृतिक बंधस्थान के छह सत्तास्थानों की संख्या इस प्रकार है-२८, २४, २१, १३, १२ और ११ ।२ इनका स्पष्टीकरण निम्न प्रकार है १ एवं नवबंधकानामपि प्रमत्ताऽप्रमत्तानां प्रत्येक चतुष्कोदये त्रीणि त्रीणि सत्तास्थानानि, तद्यया-अष्टाविंशति : चतुर्विंशतिः एकविंशतिश्च । पंचकोदये षट्कोदये च प्रत्येक पंच पंच सत्तास्थानानि । सप्तोदये त्वेकविंशतिवर्जानि शेषाणि चत्वारि सत्तास्थानानि वाच्यानि । सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १७४ २ तत्र पंचविधे बन्धे अमूनि, तद्यथा -अष्टाविंशतिः चतुर्विंशतिः एकविंशतिः त्रयोदश द्वादश एकादश च । -सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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