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________________ १३२ सप्ततिका प्रकरण में ही उत्पन्न होता है और उनके देशविरति नहीं होती है और देशविरति के न होने से उनके तेरह प्रकृतिक बंधस्थान नहीं पाया जाता है । परन्तु यहाँ तेरह प्रकृतिक बंधस्थान में सत्तास्थानों का विचार किया जा रहा है । अतः ऊपर जो यह कहा गया है कि तिर्यंचों के २३ आदि प्रकृतिक सत्तास्थान नहीं होते हैं, वह १३ प्रकृतिक बंधस्थान की अपेक्षा से ठीक ही कहा गया है। चूर्णि में भी कहा है एगवीसा तिरिक्षे संजयाऽसंजएसु न संभवइ । कहं ?. भण्णइ-संखेज्जवासाउएसु तिरिक्खेसु खाइगसम्मद्दिट्ठी न उबवज्जइ असंखेज्जवासाउएसु उववज्जेज्जा, तस्स वेसविरई नत्थि । अर्थात् - तिर्यंच संयतासंयतों के २१ प्रकृतिक सत्तास्थान नहीं होता, क्योंकि क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव संख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंचों में उत्पन्न नहीं होता है । असंख्यात वर्ष की आयु वाले तिर्यंचों में उत्पन्न होता है, किन्तु वहाँ उनके देशविरति नहीं होती है । इस प्रकार से तिर्यंचों की अपेक्षा विचार करने के बाद अब मनुष्यों की अपेक्षा विचार करते हैं । जो देशविरत मनुष्य हैं, उनके पाँच प्रकृतिक उदयस्थान के रहते २८, २४ और २१ प्रकृतिक, ये तीन सत्तास्थान होते हैं । छह प्रकृतिक और सात प्रकृतिक उदयस्थान के रहते प्रत्येक में २८, २४, २३, २२ और २१ प्रकृतिक, ये पाँच सत्तास्थान होते हैं। आठ प्रकृतिक उदयस्थान के रहते २८, २४, २३ और २२ प्रकृतिक ये चार सत्तास्थान होते हैं । उदयस्थानगत प्रकृतियों को ध्यान में रखने से इनके कारणों का निश्चय सुगमतापूर्वक हो जाता है । अर्थात् जैसे अविरत सम्यदृष्टि गुणस्थान में कथन किया गया है, वैसे ही यहाँ भी समझ लेना चाहिये । अत: अलग से कथन न करके किस उदयस्थान में कितने सत्तास्थान होते हैं, इसका सिर्फ संकेतमात्र किया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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