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________________ १०० सप्ततिका प्रकरण प्राप्ति तो अनन्तानुबंधी के उदय से होती है, अन्यथा नहीं। कहा . भी है-अणंताणुबंधुदयरहियस्स सासणभावो न संभवइ । अर्थात् अनन्तानुबंधी के उदय के बिना सासादन सम्यक्त्व की प्राप्ति होना संभव नहीं है। जिज्ञासु प्रश्न करता है कि-- अथोच्यते- यदा मिथ्यात्वं प्रत्यभिमुखो न चाद्यापि मिथ्यात्वं प्रतिपद्यति तदानीमनन्तानुबन्ध्युदयरहितोऽपि सासादनस्तेषां मतेन भविष्यतीति किमत्रायुक्तम् ? तवयुक्तम्, एवं सति तस्य षडादीनि नवपर्यन्तानि चत्वार्युदयस्थानानि भवेयुः, न च भवन्ति, सूत्र प्रतिषेधात्, तरप्यनभ्युपगमाच्च, तस्मादनन्तानु. बन्ध्युदयरहितः सासादनो न भवतीत्यवश्यं प्रत्येयम् ।। प्रश्न-जिस समय कोई एक जीव मिथ्यात्व के अभिमुख तो होता है किन्तु मिथ्यात्व को प्राप्त नहीं होता है, उस समय उन आचार्यों के मतानुसार उसके अनन्तानुबंधी के उदय के बिना भी सासादन गुणस्थान की प्राप्ति हो जायेगी। ऐसा मान लिया जाना उचित है। ___समाधान---यह मानना ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर उसके छह प्रकृतिक, सात प्रकृतिक, आठ प्रकृतिक और नौ प्रकृतिक, ये चार उदयस्थान प्राप्त होते हैं। किन्तु आगम में ऐसा बताया नहीं है और वे आचार्य भी ऐसा नहीं मानते हैं। इससे सिद्ध है कि अनन्तानुबंधी के उदय के बिना सासादन सम्यक्त्व की प्राप्ति नहीं होती है। ___"अनन्तानुबंधी की विसंयोजना करके जो जीव उपशमश्रेणि पर चढ़ता है, वह गिर कर सासादन गुणस्थान को प्राप्त नहीं होता।" यह कथन आचार्य मलयगिरि की टीका के अनुसार किया गया है, . तथापि कर्मप्रकृति आदि के निम्न प्रमाणों से ऐसा ज्ञात होता है कि ऐसा जीव भी सासादन गुणस्थान को प्राप्त होता है। जैसा कि कर्मप्रकृति की चूणि में लिखा है चरित्त वसमणं काउंकामो जति वेयगसम्मट्ठिी तो पुष्वं अणंताणुबंधिणो १ सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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