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सप्ततिका प्रकरण
एक ही भंग होता है। क्योंकि इसमें बंधने वाली प्रकृतियों के विकल्प नहीं हैं। इसी प्रकार बंधने वाली प्रकृतियों के विकल्प नहीं होने से चार, तीन, दो और एक प्रकृतिक बंधस्थानों में भी एक-एक ही विकल्प होता है-एक्केक्कमओ परं भंगा।
इस प्रकार मोहनीय कर्म के दस बंधस्थानों के कुल भंग ६+४+ २+२+२+१+१+१+१+१=२१ होते हैं। ___ मोहनीय कर्म के दस बंधस्थानों का निर्देश करने के बाद अब आगे की तीन गाथाओं में इन बंधस्थानों में से प्रत्येक में प्राप्त होने वाले उदयस्थानों को बतलाते हैं। मोहनीय कर्म के बंधस्थानों में उदयस्थान
दस बावीसे नव इक्कवीस सत्ताइ उदयठाणाई। छाई नव सत्तरसे तेरे पंचाइ अट्ठव ॥१५॥ चत्तारिमाइ नवबंधगेसु उक्कोस सत्त उदयंसा। पंचविहबंधगे पुण उदओ दोण्हं मुणेयव्वो ॥१॥ इत्तो चउबंधाई इक्केक्कुदया हवंति सम्वे वि । बंधोवरमे वि तहा उदयाभावे वि वा होज्जा ॥१७॥
शब्दार्थ-वस-दस पर्यन्त, बावीसे-बाईस प्रकृतिक बंधस्थान में, नव-नौ तक, इक्कवीस-इक्कीस प्रकृतिक बंधस्थान में, सत्ताइ
-सात से लेकर, उदयठाणाई-उदयस्थान, छाई नव-छह से नौ तक, सत्तरसे-सत्रह प्रकृतिक बंधस्थान में, तेरे-तेरह प्रकृतिक बंधस्थान में, पंचाइ-पांच से लेकर, अट्ठव-आठ तक । ___चत्तारिमाइ-चार से लेकर, नवबंधगेसु-नौ प्रकृतिक बंधस्थानों में, उक्कोस--उत्कृष्ट, सत्त-सात तक, उदयंसा-उदयस्थान, पंचविहबंधगे-पाँच प्रकृतिक बंधस्थान में, पुण-तथा,
उदओ-उदय, दोण्हं-दो प्रकृति का, मुणेयव्वो-जानना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only .. www.jainelibrary.org