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________________ सप्ततिका प्रकरण ८२ दो समय कम दो आवली प्रमाण है । क्योंकि छह नोकषायों के क्षय होने पर पुरुषवेद का दो समय कम दो आवली काल तक सत्त्व देखा जाता है । इसके बाद पुरुषवेद का क्षय हो जाने से चार प्रकृतिक, चार प्रकृतिक में से संज्वलन क्रोध का क्षय होने पर तीन प्रकृतिक और तीन प्रकृतिक में से संज्वलन मान का क्षय हो जाने पर दो प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । ये नौवें गुणस्थान में प्राप्त होते हैं । इनका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । दो प्रकृतिक सत्तास्थान में से संज्वलन माया का क्षय होने पर एक प्रकृतिक सत्तास्थान होता है । यह नौवें और दसवें गुणस्थान में प्राप्त होता है तथा इसका काल जघन्य व उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । मोहनीय कर्म के उक्त अट्ठाईस प्रकृतिक आदि पन्द्रह सत्तास्थानों का क्रम आचार्य मलयगिरि ने संक्षेप में बतलाया है। उपयोगी होने से उक्त अंश यहाँ अविकल रूप में प्रस्तुत करते हैं 'तत्र सर्व प्रकृति समुदायोऽष्टाविंशतिः । ततः सम्यक्त्वे उद्वलिते सप्तविंशतिः । ततोऽपि सम्यग्मिथ्यात्वे उद्बलिते षड्वंशतिः, अनादिमिथ्यादृष्टेर्वा षडविंशतिः । अष्टाविंशतिसत्कर्मणोऽनन्तानुबन्धिचतुष्टयक्षये चतुविशतिः । ततोऽपि मिथ्यात्वे क्षपिते त्रयोविंशतिः । ततोऽपि सम्यग्मिथ्यात्वे क्षपिते द्वाविंशतिः । ततः सम्यक्त्वं क्षपिते एकविंशतिः । ततोऽष्टस्वप्रत्याख्यानप्रत्याख्यानावरणसंज्ञेषु कषायेषु क्षीणेषु त्रयोदशः । ततो नपुंसक वेदे क्षपिते द्वादश । ततोऽपि स्त्रीवेदे क्षपिते एकादश । ततः षट्सु नोकषायेषु क्षीणेषु पञ्च । ततोऽपि पुरुषवेदे क्षीणे चतस्रः । ततोऽपि संज्वलन क्रोधे क्षपिते तिस्रः । ततोऽपि संज्वलनमाने क्षपिते द्वे । ततोऽपि संज्वलन मायायां क्षपितायामेका प्रकृतिः सतीति । ' सत्तास्थानों के स्वामी और काल सम्बन्धी दिगम्बर साहित्य का मत श्वेताम्बर कार्मग्रन्थिक मत के समान ही दिगम्बर कर्मसाहित्य १ सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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