SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 120
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ ७३ मोहनीय कर्म के उदयस्थानों को बतलाने के पश्चात् अब सत्ता स्थानों का कथन करते हैं । अट्टगसत्तगछच्चउतिगदुगए गाहिया भवे वीसा । एक्कूणा ॥ १२॥ तेरस बारिक्कारस इत्तो पंचाइ संतस्स पगइठाणाई ताणि मोहस्स हुति पन्नरस । बन्धोदयसंते पुण भंगविगप्पा बहू जाण ॥ १३॥ शब्दार्थ - अग - सत्सग छच्च उतिग- दुग-एगाहिया - आठ, सात, छह, चार, तीन, दो, और एक अधिक, भवे - होते हैं, बोसाबीस, तेरस - तेरह, बारिक्कारस - बारह और ग्यारह प्रकृति का, इत्तो - इसके बाद, पंचाइ— पांच प्रकृति से लेकर, एकूणा - एकएक प्रकृति न्यून | - संतस्स — सत्ता के, पगइठाणाइं—– प्रकृति स्थान, ताणि-वे, मोहस्स — मोहनीय कर्म के, हुंति — होते हैं, पन्नरस-पन्द्रह, - बंधोदयसंबंध, उदय और सत्ता स्थान, पुण— तथा, भंगविगप्पा - भंगविकल्प, बहू – अनेक, जाण -- जानो । गाथार्थ - मोहनीय कर्म के बीस के बाद क्रमशः आठ, सात, छह, चार, तीन, दो और एक अधिक संख्या वाले तथा तेरह, बारह, ग्यारह और इसके बाद पाँच से लेकर एक-एक प्रकृति के कम, इस प्रकार सत्ता प्रकृतियों के पन्द्रह स्थान होते हैं । इन बंधस्थानों, उदयस्थानों और सत्तास्थानों की अपेक्षा भंगों के अनेक विकल्प होते हैं । छ विइय एगयरेणं छूढे सत्त य दुर्गाछि भय अट्ठ । अणि नव मिच्छे दसगं सामन्नेणं तु नव उदया || - रामदेवगणिकृत षष्ठ कर्मग्रन्थ प्राकृत टिप्पण, या० २६, २७, (ख) इगि दुग चउ एगुत्तरआदसगं उदयमाहु मोहस्स । संजलणवेयहास र इभय दुगंछतिक सायदिट्ठी य ।। - पंचसंग्रह सप्ततिका गा० २३ Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy