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षष्ठ कर्मग्रन्थ
के प्रथम समय से लेकर सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान के अंतिम समय तक संज्वलन लोभ का उदय पाया जाता है, जिससे सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान में एक प्रकृतिक उदयस्थान बतलाया है।
उक्त एक प्रकृतिक उदयस्थान में तीन वेदों में से किसी एक वेद को मिला देने पर दो प्रकृतिक उदयस्थान होता है जो नौवें अनिवृत्तिबादर संपराय गुणस्थान के प्रथम समय से लेकर सवेदभाग के अंतिम समय तक होता है। ___ इस दो प्रकृतिक उदयस्थान में हास्य-रति युगल अथवा अरति-शोक युगल में से किसी एक युगल को मिलाने से चार प्रकृतिक उदयस्थान होता है। तीन प्रकृतिक उदयस्थान इसलिये नहीं होता है कि दो प्रकृतिक उदयस्थान में हास्य-रति या अरति-शोक युगलों में से किसी एक युगल के मिलाने से जोड़ (योग) चार होता है । अत: चार प्रकृतिक उदयस्थान बताया है। इस चार प्रकृतिक उदयस्थान में भय प्रकृति को मिलाने से पांच प्रकृतिक उदयस्थान होता है। इसमें जुगुप्सा प्रकृति के मिलाने से छह प्रकृतिक उदयस्थान होता है। ये तीनों उदयस्थान छठे, सातवें और आठवें गुणस्थान में होते हैं।
इस छह प्रकृतिक उदयस्थान में प्रत्याख्यानावरण कषाय चतुष्क की किसी एक प्रकृति को मिलाने से सात प्रकृतिक उदयस्थान होता है। जो पांचवें गुणस्थान में होता है। इसमें अप्रत्याख्यानावरण कषाय चतुष्क की किसी एक प्रकृति को मिलाने पर आठ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह उदयस्थान चौथे और तीसरे गुणस्थान में होता है । इस आठ प्रकृतिक उदयस्थान में अनन्तानुबंधी कषाय चतुष्क की किसी प्रकृति को मिलाने से नौ प्रकृतिक उदयस्थान होता है। यह स्थान दूसरे गुणस्थान में होता है और इस नौ प्रकृतिक
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