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सप्ततिका प्रकरण
___ गोत्रकर्म के सामान्य से भंग बतलाने के पश्चात् अब इन स्थानों के संवेध भङ्ग बतलाते हैं। गोत्रकर्म के सात संवेध भङ्ग इस प्रकार हैं१. नीचगोत्र का बंध, नीचगोत्र का उदय और नीचगोत्र
की सत्ता। २. नीचगोत्र का बंध, नीचगोत्र का उदय और नीच-उच्च
गोत्र की सत्ता। ३. नीचगोत्र का बंध, उच्चगोत्र का उदय और उच्च-नीच ____ गोत्र की सत्ता। ४. उच्चगोत्र का बंध, नीचगोत्र का उदय और उच्च-नीच ____ गोत्र की सत्ता। ५. उच्च गोत्र का बंध, उच्चगोत्र का उदय और उच्च-नीच
गोत्र की सत्ता। ६. उच्चगोत्र का उदय और उच्च-नीच गोत्र की सत्ता। ७. उच्चगोत्र का उदय और उच्चगोत्र की सत्ता।
इनमें से पहला भङ्ग उच्चगोत्र की उद्वलना करने वाले अग्निकायिक और वायुकायिक जीवों के होता है तथा ऐसे जीव एकेन्द्रिय, विकलत्रय और पंचेन्द्रिय तियंचों में उत्पन्न होते हैं तो उनके भी अन्तर्मुहूर्त काल तक के लिये होता है। क्योंकि अन्तर्मुहूर्त काल के पश्चात् इन एकेन्द्रिय आदि जीवों के उच्चगोत्र का बंध नियम से हो जाता है । दूसरा और तीसरा भङ्ग मिथ्यादृष्टि और सासादन इन दो गुणस्थानों में पाया जाता है, क्योंकि नीचगोत्र का बंधविच्छेद
द्वे सत्तास्थाने, तद्यथा-द्वे एकं च। तत्र उच्चैर्गोत्र-नीचैर्गोत्रे समुदिते द्वे, तेजस्कायिक-वायुकायिकावस्थायां उच्चर्गोत्रे उद्वलिते एकम्, अथवा नीचैर्गोत्रेऽयोगिकेवलिद्विचरमसमये क्षीणे एकम् ।।
-सप्ततिका प्रकरण टीका, पृ० १६१
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