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________________ षष्ठ कर्मग्रन्थ ५५ है, उसके अन्य गुणस्थानों का पाया जाना सम्भव है । इस प्रकार तिर्यंचगति में अबन्ध, बंध और उपरतबंध की अपेक्षा कुल नौ भंग होते हैं । तिर्यंचगति में आयुकर्म के अंगों का विवरण इस प्रकार है भंग क्रम काल बंध अबन्ध बंध बंधकाल नरक तिर्यंच मनुष्य IMGm x < www उदय । सत्ता गुणस्थान तिर्यंच तिर्यंच १,२,३,४,५ तियं च न० ति० तिर्यंच तिर्यंच ति० १,२ तिर्यंच म. ति० । १,२ तिर्यंच देव ति० १,२,४,५ तिर्यंच ति० न० । १,२,३,४,५ तिर्यंच | तिर्यंच ति० १,२,३,४,५ तिर्यच ति० म० १,२,३,४,५ तिर्यंच ति० दे० । १,२,३,४,५ देव उप० बंध . ० मनुष्यायु के संवेध भंग-नरक, देव और तिर्यंचायु के संवेध भंगों का कथन किया जा चुका है। अब शेष रही मनुष्यायु के भंगों को बतलाते हैं । मनुष्यायु के भी नौ भंग हैं। जो इस प्रकार समझना चाहिये__मनुष्यगति में अबन्धकाल में एक ही भंग-मनुष्यायु का उदय और मनुष्यायु की सत्ता होता है । यह भंग पहले से लेकर चौदहवें गुणस्थान तक सभी गुणस्थानों में होता है। क्योंकि मनुष्यगति में यथासम्भव सभी चौदह गुणस्थान होते हैं। बंधकाल में-१. नरकायु का बंध, मनुष्यायु का उदय और नरकमनुष्यायु की सत्ता । २. तिर्यंचायु का बंध, मनुष्यायु का उदय और तिर्यंच-मनुष्यायु की सत्ता ३. मनुष्यायु का बंध, मनुष्यायु का उदय और मनुष्य-मनुष्यायु की सत्ता तथा ४. देवायु का बंध, मनुष्यायु का उदय और देव-मनुष्यायु की सत्ता, यह चार भंग होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001897
Book TitleKarmagrantha Part 6 Sapttika
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1989
Total Pages584
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size8 MB
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