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________________ पंचम कर्म ग्रन्थ नाम होंगे । इसका कारण यह है कि कर्म प्रकृतियों के ध्रुवबंधिनी अध्रुवबंधिनी होने के कारण जैसे बंध की दशायें बताना आवश्यक है वैसे ही आगे ध्रुवोदया और अध्रुवोदया प्रकृतियों की संख्या बतलाने के पश्चात उनकी उदय दशायें भी बतलाना होंगी। अतएव मध्यमद्वारदीपक न्याय के अनुसार बंध और उदय अवस्था में बनने वाले भंगों के यहां नाम बतलाते हैं । अर्थात् यहां दिये जाने वाले भंगों को बंध में भी लगा लेना चाहिये और उदय में भी। भंगों के नाम इस प्रकार हैं १ अनादि-अनंत, २ अनादि-सान्त, ३ सादि-अनंत, ४ सादि-सान्त ।' यह चारों भंग बंध में भी होते हैं और उदय में भी। इन भंगों के लक्षण क्रमशः इस प्रकार हैं -- (१) अनादि-अनन्त-जिस बंध या उदय की परम्परा का प्रवाह अनादि काल से निराबाध गति से चला आ रहा है, मध्य में न कभी विच्छिन्न हुआ है और न आगे भी होगा, ऐसे बंध या उदय को अनादि-अनंत कहते हैं । ऐसा बन्ध या उदय अभव्य जीवों को होता है। (२) अनादि-सान्त-जिस बंध या उदय की परम्परा का प्रवाह अनादि काल से बिना व्यवधान के चला आ रहा है, लेकिन आगे १ सादि-अनन्त भंग विकल्प संभव नहीं होने से पंचसंग्रह में तीन भंग माने होई अणाइअणंतो अणाइ-संतो य साइसंतो य । बंधो अभव्वभव्वोवसंतजीवेसु इह तिविहो । ---बंध तीन प्रकार का होता है - अनादि-अनंत, अनादि-सान्त और सादिसान्त । अभव्यों में प्रमादि-अनन्त, भव्यों में अनादि-सान्त और उपशान्तमोह गुणस्थान से च्युत हुए जीवों में सादि-सान्त बंध होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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