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________________ शब्दार्थ-बन्नच उ-वर्णचतुष्क, तेय-तेजस शरीर, कम्मा-कामंण शरीर, अगुरुलहु- अगुरुलघु नामकर्म, निमिणनिर्माण नामकर्म, उवधाय-- उपघात नामकर्म, भय · भय मोहनीय, कुच्छा-जुगुप्सा मोहनीय, मिच्छ--मिथ्यात्व' मोहनीय, कसायाकषाय, आवरणा - आवरण – ज्ञानावरण पांच व दर्शनावरण नौ कुल चौदह, विग्धं-पांच अन्त राय, धुवबंधि-ध्र वबंधी प्रकृतियां, सगवत्ता-सैतालीस। ___ गाथार्थ-वर्णचतुष्क, तैजस कार्मण शरीर, अगुरुलघु नाम, निर्माण नाम, उपघात नाम, भय मोहनीय, जुगुप्सा मोहनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पांच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, और पांच अन्तराय ये सैंतालीस प्रकृतियाँ ध्रुवबन्धिनी हैं । विशेषार्थ-गाथा में ध्रुवबन्धिनी प्रकृतियों के नामों का निर्देश किया है । अपने योग्य सामान्य कारणों के होने पर जिन प्रकृतियों का बंध होता है वे ध्रुवबन्धिनी प्रकृतियां हैं। कर्म की मूल प्रकृतियां आठ हैं--(१) ज्ञानावरण, (२) दर्शनावरण, (३) वेदनीय, (४) मोहनीय, (५) आयु, (६) नाम, (७) गोत्र और (6) अन्तराय । इनकी बंधयोग्य उत्तर प्रकृतियाँ क्रमशः ५+६+२+ २६+४+६७+२+५=१२० होती हैं । इन एकसौ बीस प्रकृतियों में से सैंतालीस प्रकृतियां ध्रुवबन्धिनी हैं। जिनके नाम इसप्रकार हैं (१) नानावरण-~मति, श्र त, अवधि मनपर्याय और केवल ज्ञानावरण । (२) दर्शनावरण-चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल दर्शनावरण, निद्रा, निद्रा-निद्रा, प्रचला, प्रचला-प्रचला, स्त्यानद्धि ।। (३) मोहनीय-मिथ्यात्व, अनन्तानुबंधी कषाय चतुष्क, अप्रत्याख्यानावरण कषाय चतुष्क, प्रत्याख्यानावरण कषाय चतुष्क, संज्वलन कषाय चतुष्क, भय, जुगुप्सा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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