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________________ पंचम कर्मग्रन्थ ४४६ भाग का भाग दिया, उसमें से बहुभाग ऊपर की स्थिति में निक्षेपण करता सेसगभागे भजिदे असंखलोगेण तत्थ बहुभाग । गुणसेढिए सिंचदि सेसेगं चेव उदयम्हि ॥७० अवशेष एक भाग को असंख्यात लोक का भाग देकर जो बहुभाग आये, उसको गुणश्रेणि आयाम में और शेष एक भाग को उदयावनि में देना चाहिए। उदयावलिस्स दव्वं आवलिभजिवे दु होदि मनायणं । रूउणद्धाणूण पिसेप हारेण ॥७१ मज्मिमघणमवहरिदे पचयं पचयं णिसेय हारेण । गुणिदे आदि णिसे यं विसेसहीणं कम तत्तो ॥७२ उदयावलि में दिये गये द्रव्य में आवली के समय प्रमाण का भाग देने पर मध्यघन होता है और उस मध्यघन को एक कम आवली प्रमाण गच्छ के आधे कम निषेकहार का भाग देने से चय का प्रमाण होता है। उस चय को निषेकहार से (दो गुण हानि से) गुणा करने पर आवली के प्रथम निषेक के द्रव्य का प्रमाण आता है। उससे द्वितीयादि निषेकों में दिये क्रम से एक-एक चय कर घटता प्रमाण लिये जानना चाहिये । वहाँ एक कम आवली मात्र चय घटने पर अंतनिषेक में दिये द्रव्य का प्रमाण होता है। उक्कठ्ठिदम्हि देहि हु असंखसमयप्पबंधमादिम्ह । संखातीवगुणक्कम मसंखहीणं विसेसहीणकमं ॥ ७३ गुणश्रेणि के लिये अपकर्षण किये द्रव्य को प्रथम समय की एक शलाका, उससे दूसरे समय की असंख्यात गुणी, इस तरह अंत समय तक असंख्यातगुणा क्रम लिए हुए जो शलाका, उनको जोड़ उसका भाग देने से जो प्रमाण आये उसको अपनी-अपनी शलाकाओं से गुणा करने से गुणश्रेणि आयाम के प्रथम निषेक में दिया द्रव्य असंख्यात समय प्रबद्ध प्रमाण आता है। उससे द्वितीयादि निषेकों में द्रव्य क्रम से असंख्यातगुणा अंत समय तक जानना । प्रथम निषेक में द्रव्य गुणश्रेणि के अंत निषेक में दिये द्रव्य के असंख्यातवें भाग प्रमाण है । प्रथम गुणहानि का द्वितीयादि निषेकों में दिया द्रव्य चय घटता द्रव्य लिये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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