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________________ पंचम कर्मग्रन्थ ४१७ मंग की विवक्षा के विशेष से अवक्तव्य बंध सूक्ष्मसंपराय गुणस्थान से उतरने में एक होता है । अर्थात् दसवें गुणस्थान से उतर कर जब नोर्वे गुणस्थान में एक प्रकृति का बध करता है तब एक अवक्तव्य होता है और दसवें में मरण करके देवगति में जन्म लेकर जब सत्रह का बंध करता है तब दो अवक्तव्य बंध होते हैं । इस प्रकार तीन अवक्तव्य बंध जानना चाहिए । अर्थात् दसवें से उतर के जब नौवें में आता है तब संज्वलन लोभ का बंध करता है, अतः एक अवक्तव्य बंध हुआ तथा उसी दसवें में मरण कर देव असंयत हुआ तब दो अवक्तव्य बंध होते हैं, क्योंकि देव होकर १७ प्रकृतियों को दो प्रकार से बांधता है । इस तरह तीन अवक्तव्य बंध हुए । १२७ भुजाकार, ४५ अल्पतर और ३ अवक्तव्य बंध मिलकर १७५ होते हैं और इतने ही अवस्थित बंध हैं । इस प्रकार मोहनीय कर्म के सामान्य - 1 - विशेष रूप से भुजाकार आदि बंध समझना चाहिए । कर्मप्रकृतियों का जघन्य स्थितिबंध कर्मग्रन्थ में नामोल्लेखपूर्वक बताई गई कर्म प्रकृतियों के जघन्य स्थितिबंध के बारे में कर्म प्रकृति, गो० कर्मकांड और कर्मग्रन्थ के मंतव्य में समानता है । शेष पचासी प्रकृतियों के सम्बन्ध में कुछ विचारणीय यहाँ प्रस्तुत करते हैं । गो० कर्मकांड में उनके बारे में लिखा है कि सेसाणं पज्जतो बादरएइ दियो विसुद्धो य । बंधदि सव्वजहणं सगसग उक्कस्सपडिभागे ।। १४३ शेष प्रकृतियों की जघन्य स्थितियों को वादर पर्याप्त विशुद्ध परिणाम वाला एकेन्द्रिय जीव अपनी-अपनी उत्कृष्ट स्थिति के प्रतिभाग में बांधता है । इस गाथा में जिस प्रतिभाग का उल्लेख किया है, उसको गाथा १४५ में स्पष्ट किया है । एकेन्द्रियादिक जीवों की अपेक्षा से उक्त प्रकृतियों की जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति बतलाने के लिए अपनी अपनी पूर्वोक्त उत्कृष्ट स्थिति में मिथ्यात्व की उत्कृष्ट स्थिति का भाग देने से प्राप्त लब्ध एकेन्द्रिय की उत्कृष्ट स्थिति है और उसमें पल्य का असंख्यातवां भाग न्यून करने से जघन्य स्थिति होती है । अतः जघन्य स्थितिबंध को एकेन्द्रिय जीव के करने से शेष प्रकृतियों का जघन्य स्थितिबंध कर्मकांड में अलग से नहीं बतलाया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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