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________________ पंचम कर्मग्रन्थ ३०३ उपशमश्र णि चढ़ता है, वह जीव उसी भव में क्षपकश्र ेणि का आरोहण नहीं कर सकता । जो एक बार उपशम श्रेणि चढ़ता है वह कार्मग्रन्थिक मतानुसार दूसरी बार क्षपक श्र ेणि भी चढ़ सकता है ।" सैद्धांतिक मतानुसार तो एक भव में एक जीव एक ही श्रेणि चढ़ता है । इस प्रकार सामान्य रूप से उपशम श्र ेणि का स्वरूप बतलाया गया है । अब तत्संबंधी कुछ विशेष स्पष्टीकरण नीचे किया जाता है । गाथा में उपशमश्र णि के आरोहण क्रम पुरुषवेद के उदय से श्र ेणि चढ़ने वाले जीव की अपेक्षा से बतलाया गया है । यदि स्त्रीवेद के उदय से कोई जीव श्रेणि चढ़ता है तो वह पहले नपुंसक वेद का उपशम करता है और फिर क्रम से पुरुषवेद, हास्यादि षट्क और स्त्रीवेद का उपशम करता है । यदि नपुंसक वेद के उदय से कोई जीव श्र ेणि चढ़ता है तो वह पहले स्वीवेद का उपशम करता है, उसके • बाद क्रमशः पुरुषवेद, हास्यादि षट्क का और नपुंसक वेद का उपशम करता है । सारांश यह है कि जिस वेद के उदय से श्रेणि चढ़ता है उस वेद का उपशम सबसे पीछे करता है । इसी बात को विशेषावश्यक भाष्य गा० १२८८ में बताया है कि १ उक्तं च सप्ततिकाचूर्णी - जो दुवे वारे उवसमसेढि पडिवज्जइ, तस्स नियमा तमिम भवे खवगसेढी नत्थि । जो इक्कसि उवसमसेढि पडिवज्जइ तस्स खवगसेढी हुज्जति । - पंचम कर्मग्रन्थ स्वोपज्ञ टी०, पृ० १३२ तमि भवे निव्वाणं न लभइ उक्कोसओ व संसार । पोग्गलपरियवृद्ध देसूणं कोइ हिडेज्जा — विशेषावश्यक भाष्य १३१५ भव से मोक्ष नहीं जा सकता कम अर्धपुद्गल परावर्त काल उपशम श्रेणि से गिरकर मनुष्य उस और कोई-कोई तो अधिक से अधिक कुछ तक संसार में परिभ्रमण करते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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