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________________ २२० शतक - on . . . . साता वेदनीय का निरन्तर उत्कृष्ट बन्धकाल कुछ अधिक आठ वर्ष कम एक पूर्व कोटि बतलाया है।' ___एक सौ पचासी सागर तक निरन्तर बन्धने वाली प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं - 'परघुस्सासे पणिदि तसचउगे-पराघात, उच्छ्वास, पंचेन्द्रिय जाति और त्रसचतुष्क, कुल ये सात प्रकृतियां हैं । इन प्रकृतियों के अध्रुवबन्धिनी होने से कम-से-कम इनका निरन्तर बन्धकाल एक समय है । क्योंकि एक समय के बाद इनकी विपक्षी प्रकृतियां इनका स्थान ले लेती हैं तथा उत्कृष्ट निरन्तर बन्धकाल एकसौ पचासी सागर है। यद्यपि गाथा में उक्त सात प्रकृतियों के निरन्तर बन्ध के उत्कृष्ट समय को एक सौ पचासी सागर बताया है और पंचसंग्रह में भी इसी प्रकार कहा है । लेकिन इसके साथ चार पल्य अधिक और जोड़ना चाहिये । क्योंकि इनकी प्रतिपक्षी प्रकृतियों का जितना अबन्धकाल होता है उतना ही इनका बन्धकाल है। गाथा ५६ में इनकी प्रतिपक्षी स्थावरचतुष्क आदि प्रकृतियों का उत्कृष्ट अबन्धकाल चार पल्य अधिक एकसौ पचासी सागरोपम बतलाया है, अतः इनका बन्ध १ देशोनपूर्वकोटिभावनात्वेषा - इह किल कोऽपि पूर्वकोट्यायुष्को गर्भस्थो नवमासान सातिरेकान् गमयति, जातोऽप्यष्टौ वर्षाणि यावद् देश विरति मर्वविरति वा न प्रतिपद्यते, वर्षाष्टकादधो वर्तमानस्य सर्वस्यापि तथास्वाभाव्यात् देशत: सर्वतो वा विरतिप्रतिपत्तेरभावात् । -पंचसंग्रह मलयगिरि टीका, पृ० ७६ २ इह च ‘मचतुःपल्यम्' इति अनिर्देशेऽपि 'सचतुःपल्यम्' इति व्याख्यानं कार्यम् । यतो यावानतेद्विपक्षस्याबन्धकालस्तावानेवासां बन्धकाल इति । पचसंग्रहादौ च उपलक्षणादिना केनचित् कारणेन यन्नोक्तं तदभिप्रायं न विद्म इति । -पंचम कर्मग्रन्थ स्पोपश टीका, पृ० ६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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