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________________ २०२ शतक ___यह योग एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक सभी जीवों में यथायोग्य पाया जाता है । इसकी दो अवस्थायें हैं-जघन्य और उत्कृष्ट । यानो सबसे कम योगशक्ति का धारक कौन-सा जीव है और अधिकतम योगशक्ति का धारक कौन-सा जीव । इसी बात को ग्रन्थकार ने इन दो गाथाओं में स्पष्ट किया है । जो इस प्रकार है१. सबसे जघन्य योग सूक्ष्म निगोदिया लब्ध्यपप्तिक जीव को प्रथम समय में होता है—सुहम निगोयाइखण। इसके बाद अन्य जीवों की योगशक्ति में क्रमशः वृद्धि होती जाती है। २. बादर निगोदिया एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक जीव के प्रथम समय में जो योग होता है, वह उससे असंख्यात गुणा है । ३. उससे द्वीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त का जघन्य योग असंख्यात गुणा है। ४. उससे त्रीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त का जघन्य योग असंख्यात गुणा है। ५. उससे चतुरिन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त का जघन्य योग असंख्यात गुणा है । ६. उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त का जघन्य योग असंख्यात. गुणा है। ७. उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय लब्ध्य० का जघन्य योग असंख्यात गुणा है। ८. उससे सूक्ष्म निगोदिया लब्ध्यपयाप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है। ६. उससे बादर एकेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है। १०. उससे सूक्ष्म निगोदिया पर्याप्त का जघन्ययोग असंख्यात गुणा है । ११. उससे बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त का जघन्य योग असंख्यात गुणा है । १२. उससे सूक्ष्म निगोदिया पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है। १३. उससे बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है । १४. उससे द्वीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है । १५. उससे त्रीन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त का उत्कृष्ट योग असंख्यात गुणा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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