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________________ १६२ २३. उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त का जघन्य स्थितिबंध कुछ अधिक है । २४. उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त का उत्कृष्ट स्थितिबंध कुछ अधिक है । शतक २५. उससे असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त का उत्कृष्ट स्थितिबंध कुछ अधिक है । २६. उससे संयत का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यात गुणा है । २७. उससे देशसंयत का जघन्य स्थितिबंध संख्यात गुणा है । २८. उससे देशसंयत का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यात गुणा है । २८. उससे पर्याप्त सम्यग्दृष्टि का जघन्य स्थितिबंध संख्यात गुणा · है । ३०. उससे अपर्याप्त सम्यग्दृष्टि का जघन्य स्थितिबंध संख्यात गुणा है । ३१. उससे अपर्याप्त सम्यग्दृष्टि का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यात गुणा है । ३२. उससे पर्याप्त सम्यग्दृष्टि का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यात गुणा है। ३३. उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त मिथ्यादृष्टि का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यात गुणा है । ३४. उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त मिथ्यादृष्टि का जघन्य स्थितिबंध संख्यात गुणा है । ३५. उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय अपर्याप्त मिथ्यादृष्टि का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यात गुणा है । ३६. उससे संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त मिथ्यादृष्टि का उत्कृष्ट स्थितिबंध संख्यात गुणा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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