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पंचम कर्मग्रन्थ
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अब आयुकर्म की उत्कृष्ट स्थिति के बारे में कुछ विशेष स्पष्टीकरण करते हुए अबाधाकाल बतलाते हैं ।
इगविगलपुव्वकोडि पलियासंखस आउचउ अमणा । निरुवकमाण छमासा अबाह सेसाण भवतंसो ||३४||
शब्दार्थ -- इगविगल - एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय, पुथ्वको डि--- पूर्व कोड़ी वर्ष की आयु. पलियासंखंस - पल्योपम का असंख्यातवां भाग, आउचाउ - चारों आयु, अमणा असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त, निरकमाण – निरुपक्रम आयु वाले के, छमासा छह माह, अबाह् - अबाधाकाल, सेसाण - बाकी के ( संख्यात वर्ष की तथा सोपक्रम आयु वाले के ) भवतंसो - भव का तीसरा भाग ।
गाथार्थ — एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय पूर्व कोटि वर्ष की आयु और असंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त चारों आयुयों को पल्योपम के असंख्यातवें भाग जितनी आयु बांधते हैं । निरुपक्रम आयु वाले को छह माह का तथा शेष जीवों (संख्यात वर्ष की व सोपक्रम आयु वाले) के भव का तीसरा भाग जितना अबाधाकाल होता है ।
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विशेषार्थ- - मनुष्य और तिर्यंचों की उत्कृष्ट आयु सामान्य से तीन पल्य की बतलाई है, लेकिन विशेष की अपेक्षा उनमें से कुछ तिर्यंचगति के जीवों की उत्कृष्ट आयु तथा आयुकर्म की स्थिति का अबाधाकाल गाथा में स्पष्ट किया गया है ।
एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय और असंज्ञी पर्याप्तक जीवों का अलग से उत्कृष्ट आयु स्थितिबंध बतलाने का कारण यह है कि पूर्वोक्त उत्कृष्ट स्थितिबंध केवल पर्याप्त संज्ञी जीव ही कर सकते हैं, अतः वह स्थिति पर्याप्त संज्ञी जीवों की अपेक्षा से समझना चाहिए । लेकिन एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और असंज्ञी उक्त उत्कृष्ट स्थिति में से कितना
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