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पंचम कर्मग्रन्थ
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वाली कर्म प्रकृतियों के नाम बतलाने के साथ मिथ्यात्व मोहनीय कर्म की भी उत्कृष्ट स्थिति बतलाई है।
(दस कोड़ाकोड़ी सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति वाली कर्म प्रकृतियों के नाम इस प्रकार हैं
(१) मोहनीयकर्म-पुरुषवेद, रति मोहनीय, हास्य मोहनीय ।
(२) नामकर्म-शुभ विहायोगति, देवद्विक (देवगति, देवानुपूर्वी) स्थिरषट्क (स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यश-कीर्ति ।
(३) गोत्रकर्म-उच्चगोत्र ।
पन्द्रह कोड़ाकोड़ी सागरोपम की उत्कृष्ट स्थिति वाली कर्म प्रकृतियों के नाम यह हैं
(१) वेदनीय-साता वेदनीय । (२) मोहनीय-स्त्री वेद । (३) नामकर्म-मनुष्यद्विक (मनुष्यगति, मनुष्यानुपूर्वी)।'
मोहनीय कर्म की उत्तर प्रकृति मिथ्यात्व मोहनीय की उत्कृष्ट स्थिति सत्तर कोडाकोड़ी सागरोपम है ।
भयकुच्छअरइसोए विउवितिरिउरलनिरयदुगनीए । तेयपण अथिरछक्के तसचउथावरइगपणिदी॥३१॥ नपुकुखगइसासचउगुरुकक्खडरुक्खसीयदुग्गंधे । वीसं कोडाकोडो एवइयावाह वाससया ॥३२॥ शब्दार्थ-भयकुच्छअरइसोए-मय, जुगुप्सा, अरति और शोक मोहनीय की, विउवितिरिउरलनिरयदुगनीए-वैक्रिय द्विक, तियंचद्विक, औदारिकद्विक, नरकद्विक और नीच गोत्र की, तेयपण
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१ सादिच्छी मणुदुगे तदद्ध तु ।
-गो कर्मकांड १२८
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