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________________ पंचम कर्मग्रन्थ १०७ इस प्रकार से मोहनीय कर्म के दस बन्धस्थान और नौ भूयस्कार, आठ अल्पतर, दस अवस्थित और दो अवक्तव्य बन्ध बतलाने के बाद अब नामकर्म तथा ज्ञानावरण आदि कर्मों के वन्धस्थान व भूयस्कार आदि बन्धों का निरूपण करते हैं। तिपणछअट्ठनहिया वीसा तीसेगतीस इग नामे । छस्सगअट्टतिबन्धा सेसेसु य ठाणमिक्किक्कं ॥२५॥ शब्दार्थ-तिपणछअट्ठनहिया - तीन, पांच, छह, आठ और नो अधिक, वीसा-- बीस, तीस तीस, एगतीस इकतीम, इगएक, नामे-नामकर्म छ-छह भूयस्कार बंध, स्सग-सात अल्पतर बन्ध, अट्ठ-आठ. अवस्थित बंध, तिबंधा--तीन अवक्तव्य बन्ध, सेसेसु-बाकी के ज्ञानावरण आदि पांच कर्मों में, ठाण–बन्धस्थान इक्किक्कं-एक-एक । गाथार्थ—नामकर्म में तीन, पांच, छह, आठ और नौ अधिक बीस तथा तीस, इकतीस, एक प्रकृति रूप बंधस्थान होते हैं तथा इनमें छह भूयस्कार बंध, सात अल्पतर बन्ध, आठ अवस्थित बन्ध और तीन अवक्तव्य बन्ध हैं । दर्शनावरण, मोहनीय और नामकर्म के सिवाय शेष पांच कर्मों में एकएक बन्धस्थान है। विशेषार्थ-इस गाथा में नामकर्म के बन्धस्थानों और उनमें भूयस्कार आदि बन्धों की संख्या तथा शेष पांच कर्मों के बन्धस्थानों को बतलाया है। नामकर्म के आठ बन्धस्थान है, उनमें से कुछ की संख्या संकेत द्वारा बतलाई है। जैसे कि 'तिपणछअट्टनवहिया वीसा' तीन अधिक बीस, पांच अधिक बीस, छह अधिक बीस, आठ अधिक बीस, नौ अधिक बीस, जिनसे क्रमशः तेईस प्रकृति रूप, पच्चीस प्रकृति रूप, छब्बीस प्रकृति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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