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________________ ६६ करना अवस्थित बन्ध कहलाता है । जैसे आठ कर्म को बांधकर आठ का, सात को बांधकर सात का, छह को बांधकर छह का, एक को बांधकर एक का बन्ध करना अवस्थित बन्ध है और किसी भी कर्म का बन्ध न करके पुनः कर्म बन्ध करने पर पहले समय में अवक्तव्य बन्ध होता है- 'पढमे समए अवत्तव्वो ।' भूयस्कार आदि बंधों विषयक विशेष स्पष्टीकरण भूयस्कार आदि उक्त चार प्रकार के बंधों के संबन्ध में यह विशेष जानना चाहिए कि भूयस्कार, अल्पतर और अवक्तव्य बन्ध केवल पहले समय में ही होते हैं और अवस्थित बंध द्वितीय आदि समयों में होता है । जैसे कोई छह कर्मों का बंध करके सात का बंध करता है तो यह भूयस्कार बंध है लेकिन दूसरे समय में यही भूयस्कार नहीं हो सकता है क्योंकि प्रथम समय में सात का बंध करके यदि दूसरे समय में आठ का बंध करता है तो भूयस्कार बदल जाता है और छह कर्म का बंध करता है तो अल्पतर हो जाता है तथा सात का करता है तो अवस्थित हो जाता है । शतक उक्त कथन का सारांश यह है कि प्रकृतिसंख्या में परिवर्तन हुए बिना अधिक बाँधकर कम बांधना, कम बांधकर अधिक बांधना और कुछ भी न बांधकर पुनः बांधना केवल एक बार ही संभव है, जबकि पहली बार बांधे हुए कर्मों के बराबर पुनः उतने ही कर्मों को बांधना पुनः संभव है | अतः (एक ही अवस्थित बन्ध लगातार कई समय तक हो सकता है, किन्तु शेष तीन बंधों में यह संभव नहीं है । इस प्रकार के भूयस्कार आदि बंधों के लक्षण और मूल कर्मों में उनकी होने वाली संख्या बतलाकर उत्तर प्रकृतियों में विशेष रूप से कथन करने के पूर्व सामान्य से उत्तर प्रकृतियों में भूयस्कार आदि चारों बंधों को स्पष्ट करते हैं । ( सामान्य से उत्तर प्रकृतियों के उनतीस बंधस्थान होते हैं । जो www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
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