SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 127
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८० शतक उदय में आने के कारण जीवविपाकी माना गया है, न कि पुदगलविपाकी। इसी प्रकार क्रोध आदि कषायों को भी जीवविपाकी समझना चाहिये कि तिरस्कार करने वाले शब्दों जो कि पौद्गलिक हैं, को सुनकर जैसे क्रोध आदि का उदय होता है वैसे ही पुद्गलों का संबध हुए बिना स्मरण आदि के द्वारा भी उनका उदय होता है। अतः क्रोध आदि कषायें पुद्गलविपाकी न होकर जीवविपाकी हैं। गति नामकर्म संबधी स्पष्टीकरण ____गति नामकर्म जीवविपाकी है। इस पर जिज्ञासु प्रश्न करता है कि जैसे आयुकर्म जिस भव की आयु का बंध किया हो, उसी भव में उसका उदय होता है अन्यत्र नहीं। वैसे ही गति नामकर्म का भी अपने-अपने भव में उदय होता है। अपने भव के सिवाय अन्य भव में उसका उदय नहीं होता है। अतः आयुकर्म की तरह गति नामकर्म को भी भवविपाकी मानना युक्तिसंगत है। इसका उत्तर यह है कि आयुकर्म और गति नामकर्म के विपाक में अन्तर है । क्योंकि जिस भव की आयु का बंध किया हो, उसके सिवाय अन्य किसी भी भव में विपाकोदय द्वारा उसका उदय नहीं होता है। स्तिबुकसंक्रम द्वारा भी उदय नहीं होता है। जैसे कि मनुष्यायु का उदय मनुष्य भव में ही होता है, इतर भव में नहीं। अतः अपने उदय के लिये स्व-निश्चित भव के साथ अव्यभिचारी होने से आयुकर्म भवविपाकी माना जाता है यानी किसी भी भव के योग्य आयुकर्म का बंध हो जाने के पश्चात् जीव को उसी भव में अवश्य जन्म लेना पड़ता है । किन्तु गति नामकर्म के उदय के लिये यह बात नहीं है। क्योंकि अपने भव के बिना भी अन्य भव में स्तिबुकसंक्रम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy