________________
पंचम कर्मग्रन्थ
बायालपुन्नपगई
अपढमसठाणखगइसंघयणा । तिरियदुग असायनीयोवधाय इगविगल निरयतिगं ॥१६॥ थावरदस वन्नचउक्क घाइपण लसहिय बासोई। पावपयडित्ति दोसुवि. वन्नाइगहा सुहा असुहा ॥१७॥
शब्दार्थ-सुरनरतिग देवत्रिक, मनुष्य त्रिक, उच्च-उच्च गोत्र, सायं साता वेदनीय, तसदस · त्रसदशक, तणु.---- पांच शरीर, उवंग-तीन अगोपांग, वइर–वज्र ऋषभनाराच सहन न, चउरंसं-नम चतुरस्र सस्थान, परघासग-~-पराघात सप्तक, तिरिआउ-तिर्यंचायु, वन्नचउ-वर्ण चतुष्क, पणिदि-पंचेन्द्रिय जाति, सुभखगइ-शुभ विहायोगति ।
बायाल-बयालीस, पुन्नपगई-पुण्य प्रकृति, अपढम - पहले को छोड़कर, संठाण -संस्थान, खगइ संघयणा--विहायोगति और सहनन , तिरियदुग - तिर्यंचद्विक, असाय - असाता वेदनीय, नीयनीच गोत्र, उवधाय-- उपघात नाम, इगविगल -- एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय, निरयतिगं-नरकत्रिक ।
थावरदस-स्थावर दशक, वन्नच उक्क - वर्ण चतुष्क, घाइघाती, पणयाल -- पैतालीस, सहिय-सहित, युक्त, बासीई-- बियासी, पावपडि-पाप प्रकृतियाँ, ति- इस प्रकार, दोसुविदोनों में, बन्नाइगहा-वर्णादि का ग्रहण करने से, सुहा - शुभ, असुहा--अशुभ ।
गाथार्थ- देवत्रिक, मनुष्यत्रिक, उच्च गोत्र, साता वेदनीय, त्रसदशक, पाँच शरीर, तीन अंगोपांग, वज्रऋषभनाराच संहनन, समचतुरस्र संस्थान, पराघात सप्तक, तिर्यंचायु, वर्ण चतुष्क, पंचेन्द्रिय जाति, शुभ विहायोगति__ये बयालीस पुण्य प्रकृतियां हैं । पहले को छोड़कर शेष
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org