SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 109
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किसी गुण का घात करने वाली नहीं होने से अघाती कहलाती हैं । इनके नाम क्रमश: इस प्रकार हैं (१) वेदनीय कर्म - साता वेदनीय, आसाता वेदनीय | (२) आयु कर्म -नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव आयु । शतक (३) नाम कर्म -राघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, अगुरुलघु, तीर्थंकर, निर्माण, उपघात, पांच शरीर - औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस, कार्मण, तीन अंगोपांग — औदारिक अंगोपांग, वक्रिय अंगोपांग, आहारक अंगोपांग, छह संस्थान--- समचतुरस्र, न्यग्रोधपरिमंडल, स्वाति, वामन, कुब्जक, हुण्डक, छह संहनन - वज्रऋषभनाराच, ऋषभनाराच, अर्धनाराच, कीलिका, सेवार्त, पाँच जातिएकेन्द्रिय, द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, चार गति -नरक, तिर्यच, मनुष्य, देव, विहायोगतिद्विक शुभ विहायोगति, अशुभ विहायोगति, आनुपूर्वी चतुष्क—- नरकानुपूर्वी, तिर्यंचानुपूर्वी, मनुष्यानुपूर्वी, देवानुपूर्वी, तसवीशक (लस दशक व स्थावर दशक), वर्ण, गंध, रस, स्पर्श । (४) गोत्र - उच्च गोत्र, नीच गोत्र । उक्त प्रकृतियों के नामोल्लेख में वेदनीय की २, आयु की ४, नाम की ६७ और गोत्र कर्म की २ प्रकृतियां हैं । कुल मिलाकर २+४+ ६७ +२= ७५ होती हैं । इस प्रकार से घाति और अधाती की अपेक्षा प्रकृतियों का वर्गीकरण करने के पश्चात् अब पुण्य, पाप (शुभ, अशुभ, प्रशस्त, अप्रशस्त ) के रूप में उनका विभाजन करते हैं । पुण्य-पाप प्रकृतियां - सुरनरतिगुच्च साय तसदस तणुवंगवरचरंसं | परधासग तिरियाकं वन्नचर पणिवि सुभलगइ ||१५|| For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001896
Book TitleKarmagrantha Part 5 Shatak
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorShreechand Surana, Devkumar Jain Shastri
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1986
Total Pages504
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy