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________________ जीवस्थान-अधिकार २७ अपर्याप्त तथा पर्याप्त सूक्ष्म एकेन्द्रिय आदि उपर्युक्त ग्यारह जीवस्थानों में तीन लेश्यायें कही गई हैं। इसका कारण यह है कि वे सब जीवस्थान, अशुभ परिणामवाले ही होते हैं; इसलिये उनमें शुभ परिणामरूप पिछली तीन लेश्यायें नहीं होती। इस जगह जीवस्थानों में बन्ध, उदीरणा, सत्ता और उदय का जो विचार किया गया है, वह मूल प्रकृतियों को लेकर। प्रत्येक जीवस्थान में किसी एक समय में मूल आठ प्रकृतियों में से कितनी प्रकृतियों का बन्ध, कितनी प्रकृतियों की उदीरणा, कितनी प्रकृतियों की सत्ता और कितनी प्रकृतियों का उदय पाया जा सकता है, उसी को दिखाया है। १. बन्य पर्याप्त संज्ञी के अतिरिक्त सब प्रकार के जीव, प्रत्येक समय में आयु को छोड़कर सात कर्म-प्रकृतियों को बाँधते रहते हैं। आठ कर्म-प्रकृतियों को वे तभी बाँधते हैं, जब कि आयु का बन्ध करते हैं, आयु का बन्ध एक भव में एक ही बार, जघन्य या उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त तक ही होता है। आयुकर्म के लिये यह नियम है कि वर्तमान आयु का तीसरा, नौवाँ या सत्ताईसवाँ आदि बाकी रहने पर ही परभव के आयु का बन्ध होता है। इस नियम के अनुसार यदि बन्ध न हो तो अन्त में जब वर्तमान आयु, अन्तर्मुहूर्त-प्रमाण बाकी रहता है, तब अगले भव की आयु का बन्ध अवश्य होता है। २. उदीरणा उपर्युक्त तेरह प्रकार के जीवस्थानों में प्रत्येक समय में आठ कर्मों की उदीरणा हुआ करती है। सात कर्मों की उदीरणा, आयु की उदीरणा न होने के समय-जीवन की अन्तिम आवलिका में पायी जाती है; क्योंकि उस समय, आवलिकामात्र स्थिति शेष रहने के कारण वर्तमान (उदयमान) आयु की, और अधिक स्थिति होने पर भी उदयमान न होने के कारण अगले भव की आयु की उदीरणा नहीं होती। शास्त्र में उदीरणा का यह नियम बतलाया है कि जो १. उक्त नियम सोपक्रम (अपवर्त्य घट सकनेवाली) आयुवाले जीवों को लागू पड़ता है, निरूपक्रम आयुवालों को नहीं। वे यदि देव-नारक या असंख्यातवर्षीय मनुष्यतिर्यञ्च हों तो छह महीने आयु बाकी रहने पर ही परभव की आयु बाँधते हैं। -वृहत्संग्रहणी, गा. ३२१-३२३, तथा पञ्चम कर्मग्रन्थ, गा. ३४। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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