________________
प्रस्तावना
बौद्धशास्त्र में बोधिसत्त्व का जो लक्षण है, वही जैनशास्त्र के अनुसार सम्यग्दृष्टि का लक्षण है। जो सम्यग्दृष्टि होता है, वह यदि गृहस्थ के आरम्भसमारम्भ आदि कार्यों में प्रवृत्त होता है, तो भी उसकी वृत्ति तप्तलोहपदन्यासवत् अर्थात् गरम लोहे पर रक्खे जाने वाले पैर के समान सकम्प या पाप भीरु होती है। बौद्धशास्त्र में भी बोधिसत्त्व का वैसा ही स्वरूप मानकर उसे कायपाती अर्थात् शरीरमात्र से (चित्त से नहीं) सांसारिक प्रवृत्ति में पड़ने वाला कहा है। वह चित्त पाती नहीं होता।
इति । .
१. 'कायपातिन एवेह बोधिसत्त्वाः परोदितम् ।
न चित्तपातिनस्ताव देतदत्रापि युक्तिमत् ॥ २७१ ||' – योगबिन्दु |
xxxvii
Jain Education International
२. ' एवं च यत्परैरुक्तं बोधिसत्त्वस्य लक्षणम् ।
विचार्यमाणं सन्नीत्या तदप्यत्रोपपद्यते ॥१०॥ तप्तलोहपदन्यासतुल्यावृत्तिः क्वचिद्यदि ।
इत्युक्तेः कायपात्येव चित्तपाती न स स्मृतः || ११||' - सम्यग्दृष्टिद्वात्रिंशिका |
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org