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गाथाङ्क
७२
४८
४७
२३, २८
७३
३६,३८
१२,१६,२०,२५, ३२, ४२
५८
३,१२,१६,२०,२१,२३,२६, ३०,४२,४६,४८, ५६
चौथे कर्मग्रन्थ का कोष
प्राकृत
अओपर
अतदुग
अंताइम
अंतिम
अक्खा
अग्गि
अचक्खु
अछहास
अजय
अ
संस्कृत
अतः पर
अन्तद्विक
अन्तादिम
अन्तिम
आख्या
अग्नि
अचक्षुष्
अषट्हास
अयत
हिन्दी
इससे अगाड़ी ।
'सयोगकेवली' और अयोगकेवली' नाम के दो
तेरहवाँ और चौदहवाँ गुणस्थान।
आखीर का और शुरू का
आखीर का ।
नाम।
अग्निकायिक नामक जीव - विशेष
'अचक्षुर्दर्शन' नामक दर्शन विशेष (६२-६) १ छः हास्यादि को छोड़कर ।
'अयत' नामक चौथा गुणस्थान तथा उत्तम मार्गणा - विशेष (६२-१)
१. इस क्रेचिट के अन्दर के अङ्क, पृष्ठ और पङ्क्तियोंके अङ्क हैं, उस जगह उन शब्दों का विशेष अर्थ उल्लिखित है।