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गुणस्थानाधिकार असंख्यात और अनन्त के मूल-भेद तीन-तीन हैं, जो मिलने से छः होते हैं। जैसे- १. परीत्तासंख्यात, २. युक्तासंख्यात और ३. असंख्यातासंख्यात, ४. परीत्तानन्त, ५. युक्तानन्त और ६. अनन्तानन्त। असंख्यात के तीनों भेद के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट भेद करने से नौ और इस तरह अनन्त के भी नौ उत्तर भेद होते हैं, जो ७१ वी गाथा में दिखाये हुए हैं। ____ उक्त छह मूल भेदों से दूसरे का अर्थात् युक्तासंख्यात का अभ्यास करने से नौ उत्तर-भेदों में से सातवाँ असंख्यात अर्थात् जघन्य असंख्यातासंख्यात होता है। जघन्य असंख्यातासंख्यात में से एक घटाने पर पीछे का उत्कृष्ट भेद अर्थात् उत्कृष्ट युक्तासंख्यात होता है। जघन्य युक्तासंख्यात और उत्कृष्ट युक्तासंख्यात के बीच की सब संख्याएँ मध्यम युक्तासंख्यात हैं।
उक्त छह मूल भेदों में से तीसरे का अर्थात् असंख्यातासंख्यात का अभ्यास करने से अनन्त के नौ उत्तर भेदों में से प्रथम अनन्त अर्थात् जघन्य परीत्तानन्त होता है। जघन्य परीत्तानन्त में से एक संख्या घटाने पर उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात होता है। जघन्य असंख्यातासंख्यात और उत्कृष्ट असंख्यातासंख्यात के बीच की सब संख्याएँ मध्यम असंख्यातासंख्यात हैं। ___ चौथे मूल भेद का अर्थात् परीत्तानन्त का अभ्यास करने से अनन्त का चौथा उत्तर भेद अर्थात् जघन्य युक्तानन्त होता है। एक कम जघन्य युक्तानन्त उत्कृष्ट परीत्तानन्त है। जघन्य परीत्तानन्त तथा उत्कृष्ट परीत्तानन्त के बीच की सब संख्याएँ मध्यम परीत्तानन्त हैं।
पाँचवें मूल भेद का अर्थात् युक्तानन्त का अभ्यास करने से अनन्त का सातवाँ उत्तर भेद अर्थात् जघन्य अनन्तानन्त होता है। इसमें से एक कम करने पर उत्कृष्ट युक्तानन्त होता है। जघन्य युक्तानन्त और उत्कृष्ट युक्तानन्त के बीच की सब संख्याएँ मध्यम युक्तानन्त हैं। जघन्य अनन्तानन्त के आगे की सब संख्याएँ मध्यम अनन्तानन्त ही हैं; क्योंकि सिद्धान्त' मत के अनुसार उत्कृष्ट अनन्तानन्त नहीं माना जाता।।७९॥
असंख्यात तथा अनन्त के भेदों के विषय में कार्मग्रन्थिक मत इय सुत्तुत्तं अन्ने, वग्गियमिक्कसि चउत्थयमसंखं। होइ असंखासंखं, लहु रूपजुयं तु तं मझं।।८।।
१. अनुयोगद्वार, पृ. २३४/१ तथा २४१।
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