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________________ १३८ चौथा कर्मग्रन्थ इसके आगे फिर भी पूर्वोक्त विधि के अनुसार अनवस्थित पल्य को खाली करना और एक-एक सर्षप को शलाका पल्य में डालना चाहिये। इस प्रकार शलाका पल्य को बार-बार भर कर उक्त विधि के अनुसार खाली करते जाना तथा खाली हो जाने का सूचक एक-एक सर्षप प्रतिशलाका पल्य में डालने चाहिये। जब एक-एक सर्षप के डालने से प्रतिशलाका पल्य भी पूर्ण हो जाय, तब उक्त प्रक्रिया के अनुसार अनवस्थित पल्य द्वारा शलाका पल्य को भरना और पीछे अनवस्थित पल्य को भी भर कर रखना चाहिये। अब तक अनवस्थित, शकला और प्रतिशलाका, ये तीन पल्य भर गये हैं। इनमें से प्रतिशलाका को उठाकर उसके सर्षपों में से एक-एक सर्षप को आगे के द्वीप-समुद्र में डालना चाहिये। प्रतिशलाका पल्य के खाली हो चुकने पर एक सर्षप जो प्रतिशलाका पल्य की समाप्ति का सूचक है, उसको महाशलाका पल्य में डालना चाहिये। अब तक में अनवस्थित तथा शलाका-पल्य भरे पड़े हैं, प्रतिशलाका पल्य खाली है और महाशलाका पल्य में एक सर्षप पड़ा हुआ है। इसके अनन्तर शलाका पल्य को खाली कर एक सर्षप प्रतिशलाका पल्य में डालना और अनवस्थित पल्य को खाली कर शलाका पल्य में एक सर्षप डालना चाहिये। इस प्रकार नया-नया अनवस्थित पल्य बनाकर उसे सर्षपों से भरकर तथा उक्त विधि के अनुसार उसे खाली कर एक-एक सर्षप द्वारा शलाका पल्य को भरना चाहिये। हर एक शलाका पल्य के खाली हो चुकने पर एकएक सर्षप प्रतिशलाका पल्य में डालना चाहिये। प्रतिशलाका पल्य भर जाने के बाद अनवस्थित द्वारा शलाका पल्य भर लेना और अन्त में अनवस्थित पल्य भी भर देना चाहिए। अब तक में पहले तीन पल्य भर गये हैं और चौथे में एक सर्षप है। फिर प्रतिशलाका पल्य को उक्त रीति से खाली करना और महाशलाका पल्य में एक सर्षप डालना चाहिये। अब तक पहले दो पल्य पूर्ण हैं। प्रतिशलाका पल्य खाली है और महाशलाका पल्य में दो सर्षप हैं। इस तरह प्रतिशलाका द्वारा महाशलाका को भर देना चाहिए। __इस प्रकार पूर्व-पूर्व पल्य के खाली हो जाने के समय डाले गये एकएक सर्षप से क्रमशः चौथा, तीसरा और दूसरा पल्य, जब भर जाय तब अनवस्थित पल्य, जो कि मूल स्थान से अन्तिम सर्षप वाले द्वीप या समुद्र तक लम्बा-चौड़ा बनाया जाता है, उसको भी सर्षपों से भर देना चाहिये। इस क्रम से चारों पल्य सर्षपों से ठसा-ठस भरे जाते हैं।।७४-७६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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