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________________ ११२ चौथा कर्मग्रन्थ सौ बीस में से घटा देने पर पैंसठ शेष बचती हैं। इन पैंसठ प्रकृतियों का बन्ध त्रि- हेतुक इस अपेक्षा से समझना चाहिये कि वह पहले गुणस्थान में मिथ्यात्व से, दूसरे आदि चार गुणस्थानों में अविरति से और छठे आदि चार गुणस्थानों में कषाय से होता है। > यद्यपि मिथ्यात्व के समय अविरति आदि अगले तीन हेतु, अविरति के समय कषाय आदि अगले दो हेतु और कषाय के समय योगरूप हेतु अवश्य पाया जाता है। तथापि पहले गुणस्थान में मिथ्यात्व की दूसरे आदि चार गुणस्थानों में अविरति की और छठे आदि चार गुणस्थानों में कषाय की प्रधानता तथा अन्य हेतुओं की अप्रधानता है, इस कारण इन गुणस्थानों में क्रमशः केवल मिथ्यात्व, अविरति व कषाय को बन्ध-हेतु कहा है। इस जगह तीर्थङ्कर नामकर्म के बन्ध का कारण सिर्फ सम्यक्त्व और आहारक-द्विक के बन्ध का कारण सिर्फ संयम विवक्षित है; इसलिये इन तीन प्रकृतियों की गणना कषाय-हेतुक प्रकृतियों में नहीं की है || ५३ ॥ गुणस्थानों में उत्तर बन्ध-हेतुओं का सामान्य तथा विशेष वर्णन | (पाँच गाथाओं से) पणपन्न पन्न तियछहि, - अचत्त गुणचत्त छचउदुगवीसा | सोलस दस नव नव स, -त्त हेउणो न उ अजोगिंमि । । ५४ । १. पञ्चसंग्रह - द्वार ४ की १९वीं गाथा में 'सेसा उ कसाएहिं ।' इस पद से तीर्थङ्करनामकर्म और आहारक-द्विक, इन तीन प्रकृतियों को कषाय-हेतुक माना है तथा आगे की २० वीं गाथा में सम्यक्त्व को तीर्थङ्करनामकर्म का और संयम को आहारक-द्विक का विशेष हेतु कहा है । तत्त्वार्थ - अ. ९वें के १ ले सूत्र की सर्वार्थसिद्धि में भी इन तीन प्रकृतियों को कषाय-हेतुक माना है । परन्तु श्रीदेवेन्द्रसूरि ने इन तीन प्रकृतियों के बन्ध को कषाय-हेतुक नहीं कहा है। उनका तात्पर्य सिर्फ विशेष हेतु दिखाने जान पड़ता है, कषाय के निषेध का नहीं; क्योंकि सब कर्मप्रकृति और प्रदेश - बन्ध में योग की तथा स्थिति और अनुभाग-बन्ध में कषाय को कारणता निर्विवाद सिद्ध है। इसका विशेष विचार, पञ्चसंग्रह-द्वार ४ की २० वीं गाथा की श्रीमलयगिरि-टीका में देखने योग्य है। २. यह विषय, पञ्चसंग्रह-द्वार ४की ५वीं गाथा में तथा गोम्मटसार- कर्मकाण्ड की ७८६ और ७९०वीं गाथा में है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001895
Book TitleKarmagrantha Part 4 Shadshitik
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2009
Total Pages290
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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