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________________ कर्मग्रन्थभाग-१ 'नोकषाय मोहनीय के अन्तिम तीन भेद' पुरिसित्थि तदुभयं पइ अहिलासो जव्वसाहवइ सोउ । थीनरनपुवेउदओ फुफुमतणनगरदाहसमो ।। २२।। (जव्वसा) जिसके वश से—जिसके प्रभाव से (पुरिसित्थितदुभयं पइ) पुरुष के प्रति, स्त्री के प्रति तथा स्त्री-पुरुष दोनों के प्रति (अहिलासो) अभिलाषमैथुन की इच्छा (हवइ) होती है, (सोउ) वह क्रमश: (थीनरनपुवेउदओ) स्त्रीवेद, पुरुषवेद तथा नपुंसकवेद का उदय है। इन तीनों वेदों का स्वरूप (फुफुमतणनगरदाहसमो) करीषाग्नि, तृणाग्नि और नगरदाह के समान है ।।२२।। भावार्थ-नोकषाय मोहनीय के अन्तिम तीन भेदों के नाम- १. स्त्रीवेद, २. पुरुषवेद, ३. नपुंसकवेद हैं। १. स्त्रीवेद-जिस कर्म के उदय से स्त्री को पुरुष के साथ भोग करने की इच्छा होती है, वह स्त्रीवेद कर्म है। अभिलाषा में दृष्टान्त करीषाग्नि है। करीष सूखे गोबर को कहते हैं, उसकी आग, जैसे-जैसे जलाई जाय वैसे ही वैसे बढ़ती है उसी प्रकार पुरुष के करस्पर्शादि व्यापार से स्त्री की अभिलाषा बढ़ती है। २. पुरुषवेद-जिस कर्म के उदय से पुरुष को स्त्री के साथ भोग करने की इच्छा होती है, वह पुरुषवेद कर्म है। अभिलाषा में दृष्टान्त तृणाग्नि है। तृण की अग्नि शीघ्र जलती और शीघ्र ही बुझती है; उसी प्रकार पुरुष को अभिलाषा शीघ्र उत्पन्न होती है और स्त्रीसेवन के बाद शीघ्र शान्त हो जाती है। ३. नपुंसकवेद-जिस कर्म के उदय से स्त्री, पुरुष दोनों के साथ भोग करने की इच्छा होती है, वह नपुंसकवेद कर्म है।। अभिलाषा में दृष्टान्त, नगर-दाह है। शहर में आग लगे तो बहुत दिनों में शहर को जलाती है और उस आग के बुझने में भी बहुत दिन लगते हैं, उसी प्रकार नपुंसकवेद के उदय से उत्पन्न हुई अभिलाषा चिरकाल तक निवृत्त नहीं होती और विषय सेवन से तृप्ति भी नहीं होती। मोहनीय-कर्म का व्याख्यान समाप्त हुआ। 'मोहनीय-कर्म के अट्ठाईस भेद कह चुके, अब आयु-कर्म और नाम-कर्म के स्वरूप और भेदों को कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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