________________
३६
कर्मग्रन्थभाग- १
होती है, (तं) वह कर्म (इह) इस शास्त्र में (हासाइमोहणियं) हास्य आदि मोहनीय कहा जाता है ॥२१॥
भावार्थ- सोलह कषायों का वर्णन पहले हो चुका है। नौ नोकषाय बाकी हैं, उनमें से छह नोकषायों का स्वरूप इस गाथा के द्वारा कहा जाता है, बाकी के तीन नोकषायों को अगली गाथा से कहेंगे। छह नोकषायों के नाम और उनका स्वरूप इस प्रकार है
१. हास्यमोहनीय — जिस कर्म के उदय से कारणवश - अर्थात् भांड आदि की चेष्टा को देखकर अथवा बिना कारण हँसी आती है, वह हास्य- मोहनीय कर्म कहलाता है।
यहाँ यह संशय होता है कि, बिना कारण हँसी किस प्रकार आयेगी ? उसका समाधान यह है कि तात्कालिक बाह्य कारण की अविद्यमानता में मानसिक विचारों के द्वारा जो हँसी आती है वह बिना कारण की है। तात्पर्य यह है कि तात्कालिक बाह्य पदार्थ हास्य आदि में निमित्त हों तो सकारण और सिर्फ मानसिक विचार ही निमित्त हों तो अकारण ऐसा विवक्षित है।
२. रतिमोहनीय – जिस कर्म के उदय से कारणवश अथवा बिना कारण पदार्थों में अनुराग हो – प्रेम हो, वह रति मोहनीय कर्म है।
-
३. अरतिमोहनीय -- जिस कर्म के उदय से कारणवश अथवा बिना कारण पदार्थों से अप्रीति हो - उद्वेग हो, वह अरतिमोहनीय कर्म है।
४. शोकमोहनीय - जिस कर्म के उदय से कारणवश अथवा बिना कारण शोक हो, वह शोक मोहनीय कर्म है।
५. भयमोहनीय – जिस कर्म के उदय से कारणवश अथवा बिना कारण भय हो, वह भयमोहनीय कर्म है।
भय सात प्रकार का है- १. इहलोक भय- - जो दुष्ट मनुष्यों को तथा बलवानों को देखकर होता है । २. परलोक भय - मृत्यु होने के बाद कौन-सी गति मिलेगी, इस बात को लेकर डरना। ३. आदान भय - चोर, डाकू आदि से होता है। ४. अकस्मात् भय - बिजली आदि से होता है । ५. आजीविका भय — जीवन निर्वाह के विषय में होता है । ६. मृत्यु भय -: - मृत्यु से डरना और ७. अपयश भय — अपकीर्ति से डरना ।
-
६. जुगुप्सामोहनीय – जिस कर्म के उदय से कारणवश अथवा बिना कारण, मांसादि वीभत्स पदार्थों को देखकर घृणा होती है, वह जुगुप्सा मोहनीय कर्म
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org