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________________ कर्मग्रन्थभाग-१ ३३ २. अप्रत्याख्यानावरणकषाय, एक वर्ष तक बने रहते हैं, उनके उदय से तिर्यञ्च गति योग्य कर्मों का बन्ध होता है और देश विरति रूप चारित्र होने नहीं पाता। ३. प्रत्याख्यानावरण कषायों की स्थिति चार महीने की है, उनके उदय से मनुष्य गति योग्य कर्मों को बन्ध होता है और सर्वविरतिरूप चारित्र नहीं होने पाता। ४. सवलन कषाय, एक पक्ष तक रहते हैं, उनके उदय से देवगति योग्य कर्मों का बन्ध होता है और यथाख्यातचारित्र नहीं होने पाता। कषायों के विषय में ऊपर जो कहा गया है, वह व्यवहारनय को लेकर; क्योंकि बाहुबलि आदि को सज्वलन कषाय एक वर्ष तक था तथा प्रसन्नचन्द्रराजर्षि को अनन्तानुबन्धी कषाय का उदय अन्तर्मुहूर्त तक था। इसी प्रकार अनन्तानुबन्धी कषाय का उदय रहते हुये भी कुछ मिथ्या दृष्टियों की नवग्रैवेयक में उत्पत्ति का वर्णन शास्त्र में मिलता है। 'दृष्टान्त के द्वारा क्रोध और मान का स्वरूप' जलरेणुपुढविपव्वयराईसरिसो चउव्विहो कोहो । तिणिसलयाकट्टट्ठियसेलत्थं भोवमो माणो ।।१९।। (जलरेणुपुढविपव्वयराईसरिसो) जलराजि, रेणुराजि, पृथिवीराजि और पर्वतराजि के सदृश (कोहो) क्रोध (चउव्विहो) चार प्रकार का है। (तिणिसलयाकट्टट्ठियसेलत्थंभोवमो) तिनिस-लता, काष्ठ, अस्थि और शैल स्तम्भ के सदृश (माणो) मान चार प्रकार का है ।।१७।। भावार्थ-क्रोध के चार भेद पहले कह चुके हैं, उनका हर एक का स्वरूप दृष्टान्तों के द्वारा समझाते हैं। १. सवलन क्रोध-पानी में लकीर खींचने से जैसे वह जल्द मिट जाती है, उसी प्रकार किसी कारण के उदय में आया हुआ क्रोध, शीघ्र ही शान्त हो जाये, उसे सज्वलन क्रोध कहते हैं। ऐसा क्रोध प्राय: साधुओं को होता है। २. प्रत्याख्यानावरण क्रोध-धूलि में लकीर खींचने पर, कुछ समय में हवा से वह लकीर भर जाती है, उसी प्रकार जो क्रोध, कुछ उपाय से शान्त हो, वह प्रत्याख्यानावरण क्रोध। ३. अप्रत्याख्यानावरण क्रोध-सूखे तालाब आदि में मिट्टी के फट जाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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