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________________ ३४ कर्मग्रन्थ भाग - १ से दरार हो जाती है, जब वर्षा होती है तब वह फिर से मिलती है, उसी प्रकार जो क्रोध, विशेष परिश्रम से शान्त होता है, वह अप्रत्याख्यानावरण क्रोध कहलाता है। ४. अनन्तानुबन्धी क्रोध - पर्वत के फटने पर जो दरार होती है उसका मिलना कठिन है, उसी प्रकार जो क्रोध किसी उपाय से शान्त नहीं होता वह अनन्तानुबन्धी क्रोध है। अब दृष्टान्तों के द्वारा चार प्रकार का मान कहा जाता है १. सवलन मान — बेत को बिना मेहनत नमाया जा सकता है, उसी प्रकार, मान का उदय होने पर जो जीव अपने आग्रह को छोड़कर शीघ्र नम जाता है, उसके मान को सज्वलन मान कहते हैं। २. प्रत्याख्यानावरण मान- सूखा काठ तेल वगैरह की मालिश करने पर नमता है, उसी प्रकार जिस जीव का अभिमान, उपायों के द्वारा मुश्किल से दूर किया जाय, उसके मान को प्रत्याख्यानावरण मान कहते हैं । ३. अप्रत्याख्यानावरण मान-हड्डी को नमाने के लिये बहुत से उपाय करने पड़ते हैं और बहुत मेहनत उठानी पड़ती है; उसी प्रकार जो मान, बहुत से उपायों से और अति परिश्रम से दूर किया जा सके, वह अप्रत्याख्यानावरण मान। ४. अनन्तानुबन्धी मान - सूखा काठ तेल वगैरह की मालिश करने पर भी नहीं नमता है, उसी प्रकार जो मान कभी भी दूर नहीं किया जा सके, वह अनन्तानुबन्धी मान 'दृष्टान्तों के द्वारा माया और लोभ का स्वरूप कहते हैं। ' मायावलेहिगोमुत्तिमिंढसिंगघणवंसिमूलसमा । लोहो हलिद्दखंजणकद्दमकिमिरागसामाणो ।। २० ।। (अवलेहिगोमुत्तिमिढसिंगघणवंसिमूलसमा ) अवलेखिका, गोमूत्रिका, मेषशृङ्ग और घनवंशीमूल के समान (माया) माया, चार प्रकार की है। (हलिद्दखंजणकद्दमकिमिरागसामाणो ) हरिद्रा, खञ्जन, कर्दम और कृमिराग के समान ( लोहो) लोभ चार प्रकार का है ॥ २० ॥ भावार्थ- माया का अर्थ है कपट, स्वभाव का टेढ़ापन, मन में कुछ और, बोलना या करना कुछ और। इसके चार भेद हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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