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________________ २४ कर्मग्रन्थभाग-१ २. जिस कर्म के उदय से, आत्मा को अनुकूल विषयों की अप्राप्ति से अथवा प्रतिकूल विषयों की प्राप्ति से दुःख का अनुभव होता है, वह असातावेदनीय कर्म है। आत्मा को जो अपने स्वरूप के सुख का अनुभव होता है। वह किसी भी कर्म के उदय से नहीं। मधुलिप्त खड्गधारा का दृष्टान्त देकर यह सूचित किया गया है कि वैषयिक सुख-अर्थात् पौद्गलिक सुख, दुःख से मिला हुआ ही है। ___'चार गतियों में साता-असाता का स्वरूप, मोहनीय-कर्म का स्वरूप और उसके दो भेद ओसन्नं सुरमणुए सायमसायं तु तिरियनरएसु । मज्जं व मोहणीयं दुविहं दंसणचरणमोहा ।।१३।। (ओसन्नं) प्राय: (सुरमणुए) देवों और मनुष्यों में (सायं) सातावेदनीय-कर्म का उदय होता है। (तिरियनरएसु) तिर्यञ्चों और नारकों में (तु) तो प्राय: (असायं) असातावेदनीय-कर्म का उदय होता है। (मोहणीयं) मोहनीय-कर्म, (मज्जं व) मद्य के सदृश है; और वह (दंसणचरणमोहा) दर्शनमोहनीय तथा चारित्रमोहनीय को लेकर (दुविहं) दो प्रकार का है ।।१३।। __ भावार्थ-देवों और मनुष्यों को प्रायः सातावेदनीय का उदय रहता है। प्रायः शब्द से यह सूचित किया जाता है कि उनको असातावेदनीय का भी उदय हुआ करता है, परन्तु कर्म-देवों को अपनी देवगति से च्युत होने के समय; अपनी ऋद्धि की अपेक्षा दूसरे देवों की विशाल ऋद्धि को देखने से जब ईर्ष्या का प्रादुर्भाव होता है तब; तथा और समयों में भी असातावेदनीय का उदय हुआ करता है। इसी प्रकार मनुष्यों को गर्भवास, स्त्री-पुत्र वियोग, शीत-उष्ण आदि से दुःख हुआ करता है। तिर्यञ्च जीवों तथा नारक जीवों को प्रायः असातावेदनीय का उदय हुआ करता है। प्रायःशब्द से सूचित किया गया है कि उनको सातावेदनीय का भी उदय हुआ करता है, परन्तु कम। तिर्यञ्चों में कई हाथी, घोड़े, कुत्ते आदि जीवों का आदर के साथ पालन-पोषण किया जाता है। इसी प्रकार नारक जीवों को भी तीर्थङ्करों के जन्म आदि कल्याणकों के समय सुख का अनुभव हुआ करता है। सांसारिक सुख का देवों को विशेष अनुभव होता है और मनुष्यों को उनसे कम। दुःख का विशेष अनुभव, नारक तथा निगोद के जीवों को होता है उनकी अपेक्षा तिर्यञ्चों को कम होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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