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________________ कर्मग्रन्थभाग-१ २३ ३. प्रचला-खड़े-खड़े या बैठे-बैठे जिसको नींद आती है, उसकी नींद को प्रचला कहते हैं, जिस कर्म के उदय से ऐसी नींद आये, उस कर्म का भी नाम 'प्रचला' है। ४. प्रचला-प्रचला-चलते फिरते जिसको नींद आती है, उसकी नींद को प्रचला-प्रचला कहते हैं, जिस कर्म के उदय से ऐसी नींद आये, उस कर्म का भी नाम 'प्रचला-प्रचला' है। ___'स्त्यानद्धि का स्वरूप और वेदनीय कर्म का स्वरूप' दिणचिंतियस्थकरणी, थीणद्धी अद्धचक्किअद्धबला। महुलित्तखग्गधारालिहणं व दुहा उ वेयणियं ।।१२।। ___ (दिणचिंतियत्थकरणी) दिन में सोचे हुये काम को करने वाली निद्रा को (थीणद्धी) स्त्यानर्द्धि कहते हैं, इस निद्रा में जीव को (अद्धचक्किअद्धबला) अर्द्धचक्री–अर्थात् वासुदेव, उसका आधा बल होता है। (वेयणियं) वेदनीय कर्म, (महुलित्तखग्ग धारालिहणं व) मधु से लिप्त, खग की धारा को चाटने के समान है और यह कर्म (दुहा उ) दो ही प्रकार का है ।।१२॥ भावार्थ-स्त्यानर्द्धि का दूसरा नाम स्त्यानगृद्धि भी है, जिसमें आत्मा की शक्ति, पिण्डित–अर्थात् इकट्ठी होती है, उसे स्त्यानगृद्धि कहते हैं। ५. स्त्यानगृद्धि-जो जीव, दिन में अथवा रात में सोचे हुये काम को नींद की हालत में कर डालता है, उसकी नींद को स्त्यानगृद्धि कहते हैं, जिस कर्म के उदय से ऐसी नींद आती है, उस कर्म का भी नाम स्त्यानगृद्धि है। वज्रऋषभनाराच संहनन वाले जीव को, जब इस स्त्यानर्द्धि कर्म का उदय होता है, तब उसे वासुदेव का आधा बल हो जाता है, यह जीव, मरने पर अवश्य नरक जाता है। तीसरा कर्म वेदनीय है। इसे वेद्य कर्म भी कहते हैं। इसका स्वभाव, तलवार की शहद लगी हुई धारा को चाटने के समान है। वेदनीय कर्म के दो भेद हैं१. सातावेदनीय और २. असातावेदनीय- तलवार की धार में लगे हये शहद को चाटने के समान सातावेदनीय है और खड्गधारा से जीभ के कटने के समान असातावेदनीय है। १. जिस कर्म के उदय से आत्मा को विषय सम्बन्धों से सुख का अनुभव होता है, वह सातावेदनीय कर्म है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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