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कर्मग्रन्थभाग- १
सर्वघाती है और दूसरे चार देशघाती । दर्शनावरणीय कर्म, द्वारपाल के समान है। जिस प्रकार द्वारपाल, जिस पुरुष से वह नाराज है, उसको राजा के पास जाने नहीं देता, चाहे राजा उसे देखना भी चाहे । उसी प्रकार दर्शनावरण कर्म, जीव रूपी राजा की पदार्थों के देखने की शक्ति में रुकावट पहुँचाता है। दर्शनावरणीय चतुष्क और पाँच निद्राओं को मिलाकर दर्शनावरणीय के नौ भेद होते हैं, सो आगे दिखलायेंगे।
'दर्शनावरणीयचतुष्क'
चक्खूदिट्ठिअचक्खूसेसिंदियओहिकेवलेहिं च । दंसणमिह सामन्नं तस्सावरणं तयं चउहा ।। १० । ।
(चक्खुदिट्ठि) चक्षु का अर्थ है दृष्टि अर्थात् आंख, ( अचक्खु सेसिंदयि ) अचक्षु का अर्थ है शेष इन्द्रियाँ अर्थात् आँख को छोड़कर अन्य चार इन्द्रियाँ, (ओहि ) अवधि और (केवलेहिं) केवल इनसे (दंसण) दर्शन होता है जिसे कि (इह) इस शास्त्र में (सामनं) सामान्य उपयोग कहते हैं। (तत्सावरणं) उसका आवरण, (तयं चउहा ) उन दर्शनों के चार नामों के भेद से चार प्रकार का है। (च) 'केवलेहिं च' इस 'च' शब्द से, शेष इन्द्रियों के साथ मन के ग्रहण करने की सूचना दी गई है ॥ १०॥
भावार्थ- दर्शनावरण चतुष्क का अर्थ है दर्शनावरण के चार भेद; वे ये हैं - १. चक्षुर्दर्शनावरण, २. अचक्षुर्दर्शनावरण, ३. अवधिदर्शनावरण और ४. केवलदर्शनावरण।
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१. चक्षुर्दर्शनावरण - आँख के द्वारा जो पदार्थों के सामान्य धर्म का ग्रहण होता है, उसे चक्षुर्दर्शन कहते हैं, उस सामान्य ग्रहण को रोकने वाला कर्म, चक्षुर्दर्शनावरण कहलाता है।
२. अचक्षुर्दर्शनावरण - आँख को छोड़कर त्वचा, जीभ, नाक, कान और मन से जो पदार्थों के सामान्य धर्म का प्रतिभास होता है। उसे अचक्षुर्दर्शन कहते हैं। उसका आवरण, अचक्षुर्दर्शनावरण है।
३. अवधिदर्शनावरण- इन्द्रिय और मन की सहायता के बिना ही आत्मा को रूपी द्रव्य के सामान्यधर्म का जो बोध होता है। उसे अवधिदर्शन कहते हैं। उसका आवरण, अवधिदर्शनावरण है।
४. केवलदर्शनावरण-संसार के सम्पूर्ण पदार्थों का जो सामान्य
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