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कर्मग्रन्थभाग- १
के सम्बन्ध में अन्य आस्तिक दर्शनों के साथ, जैन दर्शन का कोई मतभेद नहीं नैयायिक तथा वैशेषिक दर्शन में मिथ्याज्ञान को, योगदर्शन में प्रकृति-पुरुष के अभेद ज्ञान को और वेदान्त आदि में अविद्या को तथा जैनदर्शन में मिथ्यात्व को कर्म का कारण बतलाया है, परन्तु यह बात ध्यान में रखनी चाहिये कि किसी को भी कर्म का कारण क्यों न कहा जाय, पर यदि उसमें कर्म की बन्धकता ( कर्म लेप पैदा करने की शक्ति ) है तो वह राग-द्वेष के सम्बन्ध ही से। रागद्वेष की न्यूनता या अभाव होते ही अज्ञानपन ( मिथ्यात्व) कम होता या नष्ट हो जाता है। महाभारत (शान्तिपर्व) के "कर्मणा बध्यते जन्तुः " इस कथन में भी कर्म शब्द का मतलब राग-द्वेष ही से है।
८. कर्म से छूटने के उपाय
अब यह विचार करना जरूरी है कि कर्मपटल से आवृत अपने परमात्मभाव को जो प्रगट करना चाहते हैं उनके लिये किन-किन साधनों की अपेक्षा है। जैनशास्त्र में परम पुरुषार्थ - मोक्ष - पाने के तीन साधन बतलाये हुए हैं(१) सम्यग्दर्शन, (२) सम्यग्ज्ञान और ( ३ ) सम्यक् चारित्र । कहीं-कहीं ज्ञान और क्रिया, दो को ही मोक्ष का साधन कहा है। ऐसे स्थल में दर्शन को ज्ञानस्वरूपज्ञान का विशेष – समझ कर उससे जुदा नहीं गिनते । परन्तु यह प्रश्न होता. है कि वैदिक दर्शनों में कर्म, ज्ञान, योग और भक्ति इन चारों को मोक्ष का साधन माना गया है फिर जैनदर्शन में तीन या दो ही साधन क्यों कहे गये ? इसका समाधान इस प्रकार है कि जैनदर्शन में जिस सम्यक् चारित्र को सम्यक्-क्रिया कहा है, जिसमें कर्म और योग दोनों मार्गों का समावेश हो जाता है। क्योंकि सम्यक् चारित्र में मनोनिग्रह, इन्द्रिय-जय, चित्त शुद्धि, समभाव और उनके लिये किये जाने वाले उपायों का समावेश होता है। मनोनिग्रह, इन्द्रियजय आदि सात्विक यज्ञ ही कर्ममार्ग है और चित्त शुद्धि तथा उसके लिये की जाने वाली सत्प्रवृत्ति ही योगमार्ग है। इस तरह कर्ममार्ग और योगमार्ग का मिश्रण ही सम्यक् - चारित्र है। सम्यग्दर्शन ही भक्तिमार्ग है, क्योंकि भक्ति में श्रद्धा का अंश प्रधान है और सम्यग्दर्शन भी श्रद्धा रूप ही है। सम्यग्ज्ञान ही ज्ञानमार्ग है। इस प्रकार जैन-दर्शन में बतलाये हुये मोक्ष के तीन साधन अन्य दर्शनों के सभी साधनों के समुच्चय हैं।
९. आत्मा स्वतन्त्र तत्त्व है
कर्म के सम्बन्ध में ऊपर जो कुछ कहा गया है उसकी ठीक-ठीक संगति तभी हो सकती है जब कि आत्मा को जड़ से अलग तत्त्व माना जाय । आत्मा
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