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________________ कर्मग्रन्थभाग-१ ८३ से जो कर्म की निर्जरा होती है उसे 'अकामनिर्जरा' कहते हैं। जो जीव शुभनामकर्म को बाँधते हैं वे ये हैं१. सरल-अर्थात् माया रहित मन-वाणी-शरीर का व्यापार जिसका एक सा हो ऐसा जीव शुभनाम को बाँधता है। गौरव-रहित-तीन प्रकार का गौरव है—ऋद्धि-गौरव, रस-गौरव और सात-गौरव। ऋद्धि का अर्थ है ऐश्वर्य—धनसम्पति, उससे अपने को महत्त्व शाली समझना, यह ऋद्धिगौरव है। मधुरआम्ल आदि रसों से अपना गौरव समझना यह रसगौरव है। शरीर के आरोग्य का अभिमान रखना सातगौरव है। इन तीनों प्रकार के गौरव से रहित जीव शुभनामकर्म को बाँधता है। इसी प्रकार पाप से डरनेवाला, क्षमावान्, मार्दव आदि गुणों से युक्त जीव शुभनाम को बाँधता है। जिन कृत्यों से शुभनाम कर्म का बन्धन होता है उनसे विपरीत कृत्य करनेवाले जीव अशुभनामकर्म को बाँधते हैं, जैसे कि___ मायावी—अर्थात् जिनके मन, वाणी और आचरण में भेद हो; दूसरों को ठगने वाले, झूठी गवाही देने वाले, घी में चर्बी और दूध में पानी मिलाकर बेचनेवाले, अपनी तारीफ और दूसरों की निन्दा करनेवाले, वेश्याओं को वस्त्रअलंकार आदि देने वाले; देव-द्रव्य, उपाश्रय और ज्ञानद्रव्य-द्रव्य खोनेवाले या उनका दुरुपयोग करने वाले ये जीव अशुभनाम को–अर्थात् नरकगतिअयशकीर्ति एकेन्द्रियजाति आदि कर्मों को बाँधते हैं। 'गोत्रकर्म के बन्ध-हेतु' गुणपेही मयरहिओ अज्झयणऽज्झावणारुई निच्वं । पकुणा इ जिणाइभत्तो उच्चं नीयं इयरहा उ ।।६।। (गुणपेही) गुण-प्रेक्षी-गुणों को देखनेवाला, (मयरहिओ) मद-रहितजिसे अभिमान न हो, (निच्चं) नित्य (अज्झयणऽज्झावणारुई) अध्ययनाध्यापनरुचि-पढ़ाने पढ़ने में जिसकी रुचि है, (जिणाइभत्तो) जिन भगवान् आदि का भक्त ऐसा जीव (उच्चं) उच्चगोत्र का (पकुणइ) उपार्जन करता है। (इयरहा उ) इतरथा तु—इस से विपरीत तो (नीयं) नीचगोत्र को बाँधता है ॥६०॥ भावार्थ-उच्चैर्गोत्रकर्म के बाँधने वाले जीव इस प्रकार के होते हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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