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________________ ८४ कर्मग्रन्थभाग-१ 0 . किसी व्यक्ति में दोषों के रहते हुए भी उनके विषय में उदासीन, सिर्फ गुणों को ही देखनेवाले, २. आठ प्रकार के मदों से रहित-अर्थात् १. जातिमद, २. कुलमद, ३. बलमद, ४. रूपमद, ५. श्रुतमद, ६. ऐश्वर्यमद, ७. लाभमद और ८. तपोमद इनसे रहित। ३. हमेश: पढ़ने-पढ़ाने में जिन का अनुराग हो, ऐसे जीव। ४. जिनेन्द्रभगवान्, सिद्ध, आचार्य, उपाचार्य, साधु, माता, पिता तथा गुणवानों की भक्ति करनेवाले जीव, ये उच्चगोत्र को बाँधते हैं। जिन कृत्यों से उच्चगोत्र का बन्धन होता है उनसे उलटे काम करनेवाले जीव नीचगोत्र को बाँधते हैं—अर्थात् जिनमें गुण-दृष्टि न होकर दोष दृष्टि हो; जाति-कुल आदि का अभिमान करनेवाले, पढ़ने-पढ़ाने से जिन्हें घृणा हो, तीर्थंकर-सिद्ध आदि महापुरुषों में जिन की भक्ति न हो, ऐसे जीव नीचगोत्र को बाँधते हैं। 'अन्तराय-कर्म के बन्धु-हेतु तथा ग्रन्थ समाप्ति'। जिणपूयाविग्धकरो हिंसाइपरायणो जयइ विग्धं । इय कम्मविवागोयं लिहिओ देविंदसूरिहिं ।।६१।। (जिणपूयाविग्घकरो) जिनेन्द्र की पूजा में विघ्न करनेवाला तथा (हिंसाइपरायणो) हिंसा आदि में तत्पर जीव (विग्घं) अन्तराय-कर्म का (जयइ) उपार्जन करता है। (इय) इस प्रकार (देविंदसूरिहि) श्रीदेवेन्द्रसूरि ने (कम्मविवागोयं) इस, कर्मविपाक' नामक ग्रन्थ को (लिहिओ) लिखा है ।।६१॥ भावार्थ-अन्तराय-कर्म को बाँधनेवाले जीव-जो जीव जिनेन्द्र की पूजा का यह कहकर निषेध करते हैं कि जल, पृष्प, फलों की हिंसा होती है अतएव पूजा न करना ही अच्छा है; तथा हिंसा, झूठ, चोरी, रात्रि-भोजन करनेवाले; सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चरित्र रूप मोक्षमार्ग में दोष दिखलाकर भव्य-जीवों को मार्ग से च्युत करनेवाले; दूसरों के दान-लाभ-भोग-उपभोग में विघ्न करनेवाले; मन्त्र आदि के द्वारा दूसरों की शक्ति को हरने वाले ये जीव अन्तराय-कर्म को बाँधते है। इस प्रकार श्रीदेवेन्द्रसूरि ने इस कर्मविपाक-नामक कर्मग्रन्थ की रचना की, जो कि चान्द्रकुल के तपाचार्य श्रीजगच्चन्द्रसूरि के शिष्य हैं। ।। इति कर्मिविपाक-नामक पहला कर्मग्रन्थ ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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