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________________ कर्मग्रन्थभाग- १ (क) भाँड जैसी चेष्टा करनेवाला, औरों की हँसी करनेवाला स्वयं हँसनेवाला, बहुत बकवास करनेवाला जीव, हास्यमोहनीय कर्म को बाँधता है। (ख) देश आदि के देखने की उत्कण्ठावाला, चित्र खींचने वाला, खेलनेवाला, दूसरे के मन को अपने आधीन करनेवाला जीव रतिमोहनीय कर्म को बाँधता है। (ग) ईर्ष्यालु, पाप-शील, दूसरे के सुखों का नाश करनेवाला, बुरे कर्मों में औरों को उत्साहित करनेवाला जीव अरति मोहनीय कर्म को है। (घ) खुद डरनेवाला, औरों को डरानेवाला, औरों को त्रास देनेवाला दयारहित जीव भय - मोहनीय कर्म को बाँधता है। (ङ) खुद शोक करनेवाला औरों को शोक करानेवाला, रोने वाला जीव शोक - मोहनीय कर्म को बाँधता है । ८१ (च) चतुर्विध संघ की निन्दा करनेवाला, घृणा करनेवाला सदाचार की निन्दा करनेवाला जीव, जुगुप्सामोहनीयकर्म को बाँधता है। (३) स्त्रीवेद आदि के उदय से जीव वेदमोहनीय कर्मों को बाँधता है। - (क) ईर्ष्यालु, विषयों में आसक्त, अतिकुटिल, परस्त्री- लम्पट जीव, स्त्रीवेद को बाँधता है। (ख) स्व- दार - सन्तोषी, मन्द- कषायवाला, सरल, शीलव्रती जीव पुरुषवेद को बाँधता है। (ग) स्त्री-पुरुष सम्बन्धी काम सेवन करनेवाला, तीव्र विषयाभिलाषी, सती स्त्रियों का शील भंग करनेवाला जीव नपुंसक वेद को बाँधता है। नरक की आयु के बन्ध में ये कारण हैं— १. बहुत-सा आरम्भ करना, अधिक परिग्रह रखना । २. रौद्र परिणाम करना । Jain Education International इसी प्रकार पञ्चेन्द्रिय प्राणियों का वध करना, माँस खाना, बार-बार मैथुनसेवन करना, दूसरे का धन छीनना, इत्यादि कामों से नरक की आयु का बन्ध होता है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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