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________________ ८० कर्मग्रन्थभाग-१ ७. संघ की साधु-साध्वी-श्रावक-श्राविकाओं की निन्दा करना या उनसे शत्रुता करना। गाथा में आदि शब्द है इसलिये सिद्ध, गुरु, आगम वगैरह को लेना चाहिये--अर्थात् उनके प्रतिकूल बर्ताव करने से भी दर्शन मोहनीय-कर्म का बन्ध होता है। 'चरित्र मोहनीय-कर्म के और नरकायु के बन्ध-हेतु' दुविहं पि चरणमोहं कसायहासाइविसयविवसमणो । बंधइ नरयाउ महारंभपरिग्गहरओ रुद्दो ।। ५७।। (कसायहासाइविसयविवसमणो) कषाय, हास्य आदि तथा विषयों से जिसका मन पराधीन हो गया है ऐसा जीव, (दुविहंपि) दोनों प्रकार के (चरणमोहं) चारित्र मोहनीय-कर्म को (बंधइ) बाँधता है (महारंभपरिग्गहरओ) महान् आरम्भ और परिग्रह में डूबा हुआ तथा (रुद्दो) रौद्र-परिणाम वाला जीव, (नरयाउ) नरक की आयु बाँधता है ।।५७|| भावार्थ-चारित्र मोहनीय की उत्तर-प्रकृतियों में सोलह कषाय, छह हास्य आदि और तीन वेद प्रथम कहे गये हैं। (१) अनन्तानुबन्धी कषाय के-अनन्तानुबन्धी क्रोध-मान माया-लोभ के उदय से जिसका मन व्याकुल हुआ है ऐसा जीव, सोलहों प्रकार के कषायों को–अनन्तानुबन्धी-अप्रत्याख्यानावरणप्रत्याख्यानावरण संज्वलन कषायों को बाँधता है। यहाँ यह समझना चाहिये कि चारों कषायों का-क्रोध, मान, माया, लोभ का–एक साथ ही उदय नहीं होता किन्तु चारों में से किसी एक का उदय होता है। इसी प्रकार आगे भी समझना। अप्रत्याख्यानावरण नामक दूसरे कषाय के उदय से पराधीन हुआ जीव, अप्रत्याख्यान आदि बारह प्रकार के कषायों को बाँधता है, अनन्तानुबन्धियों को नहीं। प्रत्याख्यानावरण कषाय वाला जीव, प्रत्याख्यानावरण आदि आठ कषायों को बाँधता है, अनन्तानुबन्धी और अप्रत्याख्यानावरण को नहीं। संज्वलनकषाय वाला जीव, संज्वलन के चार भेदों को बाँधता है औरों को नहीं। (२) हास्य आदि नोकषायों के उदय से जीव व्याकुल होता है, वह हास्य आदि छ: नोकषायों को बाँधता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001894
Book TitleKarmagrantha Part 1 2 3 Karmavipaka Karmastav Bandhswamitva
Original Sutra AuthorDevendrasuri
AuthorSukhlal Sanghavi
PublisherParshwanath Vidyapith
Publication Year2008
Total Pages346
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size15 MB
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