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________________ इस कथा को लेकर देवीयाप्त नाटक की कमाई भी बनेक गह पाया जाता है। किन्तु यह अन्य इस समय उपलब्ध नहीं है। मुद्राराक्षस राधा देवीचन्द्र गुप्त के अतिरिक्त 'मभिसारिकवयितक' नामक एक मार mटक भी विशाखदेव ने बनाया था। इस बात का उल्लेख अभिनवभारती [4. २२ पृ० १९७, वण ३ पृ० २८] तथा 'शृंगारप्रकाश' में मिलता है । यह नाटक वत्सराज उदयन के परितको कर लिखा गया था, यह बात भी निम्न उद्धरणों से विदित होती है “যথা লিয়াবৰনিম গাগাফিলষ্টি হয় বলী হইয়া पात् लीलाचेष्टितात् कामः प्रत्यालीयः।""- . : भि.पा . २९ १० १९७] "यथा श्रीविशालदेवकृते भिसारिकापतके वत्सराजः सम्भावितपुत्रवधाय पपावत्य कुस्तम चाम्यवाद मारR पृ० १९७) १६. पयोनिधिमपनमायण स्विीय विको 'समवकार' के निरूपण प्रसंग में 'पत्र द्वादश नेतारः फल सेवा पृषक पपई किं वाहरण में 'यथा पयोनिधिमेयने हरि-बमि-प्रभृतीनां समयादिलामाः' इस रूप में 'पयोधिमथन' का उल्लेख होने से यह 'समवकार' प्रतीत होता है । 'दशरूपक' के समवकार निरूपण में भी 'बहुवीररसाः सर्वे यवदम्भोधिमन्यने' [३-६४] इस रूप में 'अम्भोधिमथन' का उल्लेख किया गया है। यह 'पयोधिमथन' का ही दूसरा नामान्तर है। भोमदेव के 'शृंगारप्रकाश' में [प्र. ११ पृ. १४८) तथा हेमचन्द्राचार्य • 'काम्यानुशासन में अपभ्रंश भाषा में लिखे गए एक 'मधिमथत' का उल्लेख निम्न प्रकार मिलता है "योऽपभ्रशनिबद्धो मात्राछन्दोभिरभिमतोऽल्पषियाम् । वाच्यः स सन्धिबन्धः चतुमुसोक्ताधिमपनादि ॥" [शृंगारप्रकाश पृ० २१, पृ० १४८] अपभ्रंशभाषानिबद्धसन्धिबन्धमथनादि । [काव्यानुशासन ० ८ १० १३०] पता नहीं इसी 'मम्धिमथन' को नाट्यदर्पण कार ने यहाँ 'पयोधिमथम' के नाम से निविष्ट किया है, या यह कोई अलग ग्रन्थ है । न यह ग्रन्थ मिलता है और न उसके कर्ता मादि का पता चलता है। १६. पाण्डवानन्दम् - नाट्यदर्पण के द्वितीय विवेक में वीथी' के 'उद्घात्यक' नामक ११वें अंग के उदाहरण में पाण्डवानन्द का सूत्रधार सपा पारिपश्विक की उक्ति-प्रत्युक्ति म 'का भूषा बलिना क्षमा' इत्यादि एक श्लोक उवृत किया गया है। उसकी प्रवतरणिका में- 'यथा पागवानन्दे सूत्रधार-परिपाश्विकयोक्तिप्रत्युक्ती-' इस रूप में 'पाण्डवानन्द' का उल्लेख किया, गया है। पीपी' के प्रसंग में निर्दिष्ट होने के कारण यह 'बीथी' है ऐसा अनुमान होता है। 'पम्पकावलोक' में 'उद्घात्यक' के उदाहरण रूप में तनिक से पाठ भेद के साथ यही पच उड़त किया गया है। 'अभिनवभारती' [म. १८ पु. ४५४] में भी 'पाण्डवानन्द' का यह पर सड़त हुमा है और बारदातनय के 'मावप्रकाशम' [१० २३०] में भी यह पच पाण्डवानन्द' से उड़त पावा पाता है। किन्तु इसका कर्ता कौन पा इसका कुछ भी पता नहीं चलता है पोरन यह अन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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