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________________ प्रकाश' में [पृ. २३८, २४१] दो जगह और साहित्यदर्पण [परि० ६, इलोक १३७] में भी इसका उल्लेख पाया जाता है । कुन्तक ने भी वक्रोक्तिजीवित में इसका उल्लेख किया है। किन्तु 'शरकावलोक' में इसका एक बार भी उल्लेख नहीं मिला यह प्राश्चर्य की बात है.। इतना प्रसिद्ध यह नाटक भी प्राज उपलब्ध नहीं हो रहा है, यह भी पाश्चर्य की बात है। (१०) कोशलिकानाटिका-नाटपदर्पण के प्रथम विवेक की दसवीं कारिका की व्याख्या के प्रसङ्ग में केवल एक बार 'कोशालिकानाटिका' का उल्लेख पाया है। इस उल्लेख से वह प्रतीत होता है कि यह नाटिका वत्सराब उपवन के चरित्र को लेकर लिखी गई थी। नाटपर्पण में लिखा है- 'यथा मधीभवनुत (१)शविरचितायो कोशालिकायो नाटिकाया कोशामिकाप्राहिमधिकृत्य प्रवृनस्य वरसगमस्य न प्रासनिकम् ।" इस नाटिका का अन्यत्र कोई नस्लेख नहीं मिलता है, मोर न यह नाटिका ही उपलब्ध होती है। (११)-विवारपलावनिक असर -जाटपर्पण के प्रथम-विवेक में गर्मसहिए सातवें मग 'उद्वेग' के उदाहरण के प्रसङ्ग में प्रन्यकारने "यथा प्रमात्पसंकुविरचिते चित्रोपमावलम्बितके प्रकरणे पञ्चमे नेपये सचीत्कारम्-" इत्यादि का में चित्रोत्पमावलम्बितक' प्रकरण को अमात्य शंकुक की कुति घोषित किया है। शंकुक का नाम तो साहित्यशास्त्र के इतिहास में प्रत्यन्त प्रसिद्ध है। काव्यप्रकाशकार ने रस-निरूपण के प्रसङ्ग में चतुर्ष उल्लास में, अभिनवगुप्त ने 'अभिनवभारती में अनेक बार शंकुक का नाम उल्लेख किया है। किन्तु सब जगह उनके मत का खण्डन ही किया गया है। उदाहरणार्थ तेन संकुकादिभि.x xx वयंव बहुतरमुपम्यस्तम् । [.२ पृ. ६७) शंकुकस्त्वाह x x x एतदप्यसत् । [प० ६, २७४] पत्वत्र पकुकेनोक्त x x x तदसत् [म. ६, २८२] इति धीशंकुकः। एतच्च पूर्वापरविस्मरणविजृम्भितमस्य [अध्याय ६, २६३] इसी प्रकार यहां नाटघदर्पण में द्वितीय विवेक के 'वीथी' निरूपण के प्रसङ्ग में उनके मत की अनुपादेयता का प्रतिपादन करते हुए अग्थकार ने लिखा है __ "शंकुकस्तु मधमप्रकृतेायकत्वमनिच्छन् प्रहसनमाणादी हास्यरसप्रधाने विटादे. नायकत्वं प्रतिपादयन् कथमुपादेयः स्यादिति ।" [नाट ट्यदर्पण २-२८] राजतरंगिणी [स. ४,७०५] में कविबुधमनः सिन्धः शशांक: शंकुकाभिधः । यमुद्दिश्याकरोत् काव्यं सुवनाभ्युदयाभिषम् ।। इत्यादि पर द्वारा शंकुक को 'भुवनाभ्युदयम्' नामक काम्य का निर्माता बतलाया है। वल्लभदेव-संग्रहीत सुभाषितावलि' में [१२६, ५३८, ५४५, ७५०, ८७३, ८७४, १०६, १२३३, १२३४, ३१२७, ..३७८ संख्या बारह परक के नाम से उड़त किए गए है। माटपशास्त्र के ग्याल्याता के रूप में उनकी विशेष प्रसितिपिपापा के कामानुमासन [प. २०५७ रिसास्वातना भावप्रकायन' (प... २५२ बी क का उस्लेव मिा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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