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________________ का० २१५-१७, सू० २६६ ] चतुर्थो विवेकः । ४०७ [६] षोडश द्वादशाहो वा यस्मिन् नृत्यन्ति नायिका; । पिण्डीबन्धादिविन्यासः रासकं तदुदाहृतम् ॥ पिण्डनाव तु भवेत् पिण्डी गुम्फनाच्छाला भवेद । भेदनाद् मेधको जातो, लताजालापनोदतः॥६३॥ [१०]-कामिनीभिभुवो भतुश्चेष्टितं यत् तु नृत्यते। रागाद् वसन्तमासाद्य .स शेयो नाट्यरासकः ॥६४॥ साहित्यदर्पणकारने 'प्रेक्षणकम्' के स्थानपर 'प्रेक्षणम्' नामका प्रयोग किया है और उसका लक्षण निम्न प्रकार किया है गर्भावमर्शरहितं प्रेसणं हीननायकम् । असूत्रधारमेकांकमविष्कम्भ - प्रवेशकम् ॥ २८६ ॥ नियुद्धसम्फेटयुतं सर्ववृत्तिसमाश्रितम् । नेपथ्ये गीयते नान्दी तथा तत्र प्ररोचना ॥ २८७ ॥ [[] रासक जिसमें सोलह, बारह या पाठ स्त्रिया [मायिकाएं] पिणीबन्ध माविकी रचना द्वारा नाचती हैं उसको 'रासक' कहा जाता है। [नाचने वालियों के एक साथ इकट्ठे हो जानेको पिसी कहते हैं। एक-दूसरेसे मुंप: कर [मादन] शृंखला कहलाती है। पूर्व गुम्फित] लताजालको तोड़कर अलग हो जानेको भेतक कहते हैं ॥ ६३ ॥ साहित्यदर्पणकारने 'रासक'का लक्षण निम्न प्रकार किया है रासकं पंचपात्रं स्यात् मुख-निर्वहणान्वितम् । भाषा-विभाषाभूयिष्ठं भारतीकैशिकीयुतम् ॥ २८८ ॥ असूत्रधारमेकांकं सवीथ्यंगं कलान्वितम् । श्लिष्टनान्दीयुतं ख्यातनायिक मूर्खनायकम् ॥ २८ ॥ उदात्तभावविन्याससंश्रितं चोत्तरोत्तरम। इह प्रतिमुखसन्धिमपि केचित् प्रचक्षते ॥ २६ ॥ [१०] नाट्य-रासक बसन्त मावि[उन्मावक] ऋतुओंके मानेपर स्त्रियोंके द्वारा रागावि मावेशमें जो राजामों के परित्रका नृत्य द्वारा प्रदर्शन किया जाता है उसको 'नाव्य-रासक' कहा जाता है ॥४॥ साहित्यदर्पणकारने नाट्यरासकका लक्षण निम्न प्रकार किया है नाट्यरासकमेकांक बहुताललयस्थिति ॥ २८७ ॥ उदात्तनायक तद्वत्पीठम>पनायकम् । हास्योऽनयत्र सशृङ्गारो नारी वासकसज्जिका ॥२७८॥ मुखनिर्वहणे सन्धी लास्यांगानि दशाऽपि च । केचित् प्रतिमुख सन्धिमिह नेच्छन्ति केवलम् ॥ २७ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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