________________
४०६ ]
नाट्यदर्पणम् [ का० २१२-१४, सू. २६६ [५]-गोष्ठे यत्र विहरतश्चेष्टितमिह कैटभद्विषः किंचित् ।
रिष्टासुरप्रमथनप्रभृति तदिच्छन्ति गोष्ठीति ॥ ५६ ॥ [६]-यमण्डलेन नृत्तं स्त्रीणां हल्लीसकं तु तत् प्राहुः ।
तत्रको नेता स्याद् गोपस्त्रीणामिव मुरारिः ॥ ६० ॥ [७]-यस्य पदार्थाभिनयं ललितलयं सदसि नर्तको कुरुते।
तन्नर्तकं शम्या लास्यच्छलितद्विपद्यादि ॥ ६१ ॥ किन्नरविषयं लास्यं नृत्तं शम्या । शृङ्गाररसप्रधानं लास्यम् । शृङ्गार-वीर-रौद्रादिप्रधानं छलितम् । द्विपद्यादयः छन्दोभेदाः॥
[-]-रथ्या-समाज-चत्वर-सुरालयादी प्रवर्त्यते बहुभिः । ____पात्रविशेषर्यत् तत् प्रेक्षणकं कामदहनादि ॥ ६२ ॥
[५] गोष्ठी
जिसमें गोष्ठमें विहार करनेवाले कृष्णके रिटामरवष प्रादि जैसे किसी व्यापारका प्रदर्शन किया जाय उसको 'गोष्ठी' कहते हैं ॥५॥ साहित्यदर्पणकारने 'गोष्ठी'का लक्षण निम्न प्रकार किया है
प्राकृतैर्नवभिः पुभिर्दशभिर्वाप्यलंकृता । नोदात्तवचना गोष्ठी कैशिकीवृत्तिशालिनी ॥ २७४ ॥ हीना गर्भ-विमर्शाभ्यां पंच-षड् योषिदन्विता ।
काम-शृङ्गारसंयुक्ता स्यादेकाकविनिर्मिता ॥ २७५ ।। [६] हल्लीसक
स्त्रियोंका जो-मण्डलाकार बनाकर नाचना है उसको 'हल्लीसक' कहते हैं । गोपियोंक बीच कृष्णके समान उसमें एक नायक होता है । ६०॥ साहित्यदर्पणकारने हल्लीसकका लक्षण निम्न प्रकार किया है
हल्लीसक एक एवांकः सप्ताष्टौ दश वा स्त्रियः । वागुदात्तैकपुरुषः कैशिकीवृत्तिरुज्वला ।।
मुख्यान्तिमौ तथा सन्धी बहुताललयस्थितिः ॥ ३०७ ॥ [७] शम्या
सभामें नर्तकी ललित लयके साथ जिसके पदार्थोका पभिनय करती है उस मृत्यको शम्या, लास्य, छलित, द्विपदी मादि नामोंसे कहते हैं॥६१॥
किन्नरोंके नाचको 'शम्या' कहते हैं। शृंगाररस प्रधान नृत्त 'लास्य' कहलाता है। शृंगार, बोर और रोद्रादि प्रधान नृत्तको 'छलित' कहते हैं । 'विपदों' मावि [उन नृत्तोंमें गाएं जानेवाले छन्दोंके भेद होते हैं।
[८] प्रेक्षणक
- गलीमें, समाजमें, चौराहे .. अपवा मशाला पादिमें बहुतसे विशेष प्रकारके पात्रों के द्वारा जिसका प्रदर्शन किया जाय उस [नृत्यविशेष को 'प्रेक्षरएक' कहते हैं। वैसे.कामबहन प्रादि [प्रेक्षणकके उदाहरण ॥१२॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org