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________________ ४०२ ] नाट्यदपसाम् । का० २०६, सू० २४६ वाच्यः। येनेति कर्म वाणिज्य-कृषि-पाशुपाल्य-गीत-नृत्त-वाद्यवादन-चित्र-राजसेवाशस्त्र-श्रमादिव्यापारः । आदिशब्दात् जाति-कुलादिग्रहः । येन केनचित् कर्मादिना यः कश्चित प्रसिद्धः स तेन कर्मादिनोपाधिना शब्दप्रवृत्तिनिमित्तन संकीर्तनीयः । यथा गांधिकः ताम्बूलिकः, कृषीवलः, पशुपालो, गोपालो, गांधर्वश्चित्रकरः, सेवकः, वैद्यः, क्षत्रियो, ब्राह्मण इत्यादि । तथा स्वयं वा यत् कल्प्यते तदपि कर्माद्यनुरूप्येणैवेति ।। [५०-५२] २०२-२०५ ॥ अथ कल्पनीयनाम्नां कल्पनाप्रकारमाह[सूत्र २९८]-शूरे विक्रमसंसूचि कल्प्यं नामाथ वारिणजे । दत्तान्तं प्रायशो विप्रे गोत्रकर्मानुरूप्यतः ॥ [५३] २०६॥ नृपस्त्रियां शुभं दत्ता-सेनान्तं पणयोषिति । पुष्पादिवाचकं चेटयां चेटे मङ्गलकीर्तनम् ॥ [५४] २०७॥ · शूरे सत्त्वप्रधाने पुरुषे विक्रमस्य शौर्यस्य संसूचकं नाम कल्पनीयम् । यथा अर्थात् वाणिज्य, कृषि, पशु-पालन, गीत, नृत्य, वाद्य-वादन, चित्ररचना, राजसेवा, शस्त्र और श्रमादि व्यापारसे [जो प्रसिद्ध हो उसको उस उपाधिके द्वारा सम्बोधित किया जाता है] आदि शब्दसे जाति, कुल प्राविका ग्रहण होता है। जिस किसी कर्म प्रादिसे जो कोई प्रसिद्ध हो उसको उस कर्म-सूचक उपाधि प्रादिके द्वारा अर्थात उस उपाधिको नाम शब्दका प्रवृत्ति-निमित्त मानकर सम्बोधित करना चाहिए । जैसे [इतर, फुलेल प्रादिका व्यापार करने वालेको] गांधिक, [पान बेचने वालेको] ताम्बूलिक, [खेती करनेवालेको] किसान, [कुत्ते पालने वालेको] शुपाल [गायोंका पालन करने वालेको] गोपाल [संगीतसे जीविकोपार्जन करने वाले को] गांधर्व, [चित्ररचनाका कार्य करने वालेको], चित्रकर [नौकरीपेशाको] सेवक, वैद्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण इत्यादि [ये सब कर्म-निमित्तक सम्बोधन-पद कहलाते हैं । और जिन नामोंको स्वयं कल्पना की जाए वे भी कर्म आदिके अनुरूप ही होने चाहिए ॥ [५०-५२] २०३-२०५। जब आगे कल्पित किए जाने वाले नामोंको कल्पना करनेके प्रकारको कहते हैं--- [सूत्र २६८]-शूर-वीर के लिए पराक्रम-सूचक नामकी कल्पना करनी चाहिए। वरिणका नाम ऐसा रखना चाहिए जिसके अंतमें दत्त माता हो और ब्राह्मणका नाम गोत्र एवं कर्मके अनुरूप रखना चाहिए । [५३] २०६। राजाकी रानीका शुभ-सूचक नाम कल्पित करना चाहिए। वेश्याओं के नाम ऐसे बनाने चाहिए जिनके अन्त में 'दत्ता' या 'सेना' पद प्राते हों। चेटीके नाम फूल आदिके ऊपर रखने चाहिए। और चेटफा नाम किसी मंगल-वस्तुका सूचक कल्पित करना चाहिए। [५४] २०७। शूर अर्थात पराक्रम-प्रधान पुरषके लिए विक्रम अर्थात् पराक्रमके संसूचक नामको कल्पना करनी चाहिए । जैसे भीमपराक्रम अरिमर्दन आदि। बनियों के लिए प्रायः अर्थात् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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