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पर उड़त कर चुके हैं। उनमें 'वर्षमान-गुणचन्द्रगणिभ्यां' पद में गुणचन्द्रगणि पद से इन्हीं नाट्यदर्पण विवृत्तिकार गुणचन्द्र का ही संकेत किया गया है । इन गुणचन्द्र ने रामचन्द्र के साथ मिलकर दो ग्रन्थों की रचना की है। एक तो यही प्रस्तुत 'नाट्यदर्पण' ग्रन्थ और दूसरा इसी प्रकार का 'द्रव्यालङ्कारवृत्ति' ग्रन्थ है । ये दोनों ग्रन्थ रामचन्द्र तथा गुणचन्द्र की सम्मिलित कृतियां है। इन सम्मिलित दो कृतियों के अतिरिक्त रामचन्द्र की तो ३७ स्वतन्त्र कृतियां मोर पाई जाती.
किन्तु गुणचन्द्र की ओर कोई कृति नहीं पाई जाती है । गुणचन्द्र के विषय में इतना ही वर्णन उपलब्ध होता है। हो माटवर्पण
प्रस्तुत नाट्यदर्पण ग्रन्थ रामचन्द्र-गुरणचन्द्र का बनाया हुआ है। यह चार 'विवेकों' में विभक्त है । मूल ग्रन्थ कारिका रूप में लिखा गया है । उसके ऊपर ग्रन्थकारों ने स्वयं ही विवृत्ति लिखी है । ग्रन्थ में कुल २०७ कारिकाएं हैं। 'रघुनाथ' ने 'विकामोर्वशीय' की टोकायें और 'भर्तृमलिक' ने 'भट्टिकाव्य' की टीका में 'नाट्यदपंख' का उल्लेख किया है । किन्तु वह नाटयदर्पण प्रकृत ग्रन्थ से बिल्कुल भिन्न प्रतीत होता है । इस अनुमान का कारण यह है कि भर्तृ मलिक ने 'भट्टिकाव्य' [१४-२] की टीका में नाट्यदर्पण से 'शुद्धताम्रमयी मध्यशु षिरा काहला मतेति नाट्यदर्पणे' लिखकर नाट्यदर्पण का श्लोक उद्धृत किया है किन्तु यह श्लोक प्रस्तुत नाट पदर्पण में नहीं पाया जाता है। यही नहीं अपितु प्रस्तुत नाट्यदर्पण में ऐसा कोई प्रकरण नहीं है जिसमें इस श्लोक की खपत हो सकती हो। इस श्लोक में 'काला' नामक वाद्य का लक्षण किया गया है किन्तु प्रस्तुत नाटयदर्पण में वाद्य की चर्चा करने वाला कोई भी प्रकरण नहीं आया है । तब यह निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि भट्टिकाव्य [सर्ग १४-२] में उद्धृत श्लोक रामचन्द्र-गुणचन्द्र कृत नाटयदर्पण से भिन्न किसी अन्य ही नाटयदर्पण से उद्धृत किया गया है।
इसी प्रकार रघुनाथ ने विक्रमोर्वशीय टीका में नाट्यदर्पण का एक उद्धरण निम्न प्रकार दिया है
पत्र च समासोक्त्या पूर्वोक्तप्रकारेण काव्यार्थप्रकाशनात् पत्रावली समाख्येयं नान्दी। तथाचोक्त नाट्यदर्पणकृता
तस्यां बीजस्य विन्यासो ह्यभिनेयस्य वस्तुनः । श्लेषेण वा समासोक्त्या नाम्ना पत्रावली तु सा ॥
[विक्रमोर्वशीय पृ० ७ नि० सागर] इस श्लोक में नान्दी के 'पत्रावली' नामक विशेष भेद का लक्षण दिया गया है किन्तु प्रस्तुत नाट्यदर्पण में यह नहीं पाया जाता है। इससे यह प्रतीत होता है कि रामचन्द्र गुणचन्द्र कृत प्रस्तुत नाट्य दर्पण के अतिरिक्त कोई और भी नाट्य दर्पण रहा होगा जिससे कि उक्त श्लोक उद्धृत किए गए होंगे। नाट्यशास्त्र और नाट्य दर्पण
प्रस्तुत नाट्य दर्पण ग्रन्थ का मूल प्राधार भरतमुनि कृत नाट्यशास्त्र है। पर नाटयशास्त्र एक बड़ा विस्तीर्ण ग्रन्थ है । उसे समस्त ललित कलामों का विश्वकोश कहा जा सकता है। नाटय दर्पण का क्षेत्र उसकी अपेक्षा बहुत छोटा है । नाट्यशास्त्र के १८वें अध्याय में दशरूपकों का वर्णन किया गया है । मुख्यतः उसी के भाषार पर रामचन्द्र-गुण चन्द्र ने अपने इस ग्रन्य की
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