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________________ 'कौमुदी मित्राणन्द' की प्रस्तावना में भी उन्होंने इसी माय को निम्न प्रकार लिया है परोपनीतशब्दाः स्वनाम्ना कुतकीर्तयः । निबद्धारोऽधुना तेन विश्रामस्तेषु यः साम् ।। कवि रामचन्द्र न केवल काव्य रचना के क्षेत्र में अपितु जीवन के सभी क्षेत्रों में स्वतंत्रता के उपासक है। अपनी इस स्वातन्त्र्यप्रिगत का परिचा पनेक स्थानों पर दिया है । कुछ उदाहरण निम्न प्रकार है का चेत् सरसं किमर्षममृतं. वो कुरंगीहशा पोत कन्दर्पविपाण्डगण्डफलक राकाशाम किम् ? स्वातंत्र्य यदि बीविसावधि मुषा स्वभूभुवो वैभवे वैवी यदि पोवनभरा शीत्या सरस्यापि किम् ?।। नरूविलास २-२] इसके तीसरे मरण में उन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता के सामने स्वर्ग मोर तीनों लोकों के वैभव को तुच्छ बतलाया है। नलविलास के छठे पत्र में उन्होंने फिर इस स्वातंत्र्य की पर्चा की है अनुभूतं न यद् येन रूपं नार्वति तस्य सः । न स्वतंत्रो व्ययो वेत्ति परतंत्रस्य देहिनः॥ [नलविनास ६-७] पिनस्तोत्र' के रात में उन्होंने स्वातंत्र्य-महिमा का बड़ा सुन्दर वर्णन किया है 'स्वतंत्री देव ! भूयासं सारमेयोऽपि.वर्मनि । मा स्म भूवं परायत्तस्त्रिसोकस्यापि नायकः ॥ हे देव ! मैं चाहता हूँ कि में स्वतंत्र रई। भले ही गली का कुत्ता बन कर रहूँ। पराधीन हो कर में तीनों लोकों का राजा भी बनना नहीं चाहता हूँ। यह स्वातत्र्य-प्रियता का चरम रूप है । सत्यहरिश्चन्द्र की प्रस्तावना में भी उन्होंने लिखा है सूक्तयो रामचन्द्रस्य, वसन्तः, कलगीतयः । स्वातंत्र्य, इष्टयोगश्च पंचते. हर्षसृष्टयः ॥ १ रामचन्द्र की सूक्तियां, २ वसन्त, ३ सुन्दर गान, ४ स्वतंत्रता र इष्ट का योग ये पांचों बस्तुएं मानन्द एवं सुख की सृष्टि करने वाली है। "प्राप्य स्वातंत्र्यलक्ष्मी मुदमथ वहां शाश्वती यादवेन्द्रः" यादवाम्युदर] "प्राप्य स्वातंत्र्यलकमी मनुमवतु मुर्द शाश्वती भीमसेनः।" . निर्भय भीमयायोग] "प्रजातगणनाः समाः परमता स्वतंत्रो भव।" [नमविलास, तथा अत्यहरिचन्द्र] 'भाशाप यशोमवमी परी स्वतंत्रश्चिरं भूयाः" . ..कौमुदीमित्राणद] "नाम्यासां यवीच्यंत चिरं सर्वार्थ सिदि हदि" [मानधारान्ते] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001892
Book TitleNatyadarpan Hindi
Original Sutra AuthorRamchandra Gunchandra
AuthorDashrath Oza, Satyadev Chaudhary
PublisherHindi Madhyam Karyanvay Nideshalay Delhi
Publication Year1990
Total Pages554
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size9 MB
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